खलीफा हारूँ रशीद के राज्य काल में बगदाद में अलीख्वाजा नामक एक छोटा व्यापारी रहता था। वह अपने पुश्तैनी मकान में, जो छोटा-सा ही था, अकेला रहता था। उसने विवाह नहीं किया था और उसके माता पिता की भी मृत्यु हो गई थी। उसका बहुत छोटा व्यापार था और सिर्फ दो-चार आदमी ही उसे जानते थे। उनमें उसका एक सौदागर घनिष्ट मित्र था।
उक्त व्यापारी ने लगातार तीन रातों तक यह स्वप्न देखा कि एक दिव्य रूप का वृद्ध व्यक्ति उससे ही कह रहा है, तू अपना हज करने का इस्लामी कर्तव्य क्यों नहीं निभाता? तू अविलंब मक्का के लिए रवाना हो जा। अब उसने तय किया कि मक्का जाना ही चाहिए। उसने अपना व्यापार समेटा और मकान में एक किराएदार रख लिया। व्यापार समेट कर उसने जो कुछ पाया उसमें से कुछ तो यात्रा के खर्च के लिए अपने पास रख लिया बाकी एक हजार अशर्फियाँ बचीं जिनसे उसने हज से लौट कर दोबारा व्यापार करने की योजना बनाई। वह उन्हें साथ में न रखना चाहता था। क्योंकि राह में लुटने का भी भय था। उसने एक हँडिया में अशर्फियाँ रखीं और फिर उसके मुँह तक जैतून का तेल भर दिया। अपने व्यापारी मित्र के पास जा कर उसने कहा, भाई, मैं हज को जाना चाहता हूँ। मेरी यह तेल की हाँड़ी रख लो। मैं इसे वापस आ कर ले लूँगा। उसने उसे यह नहीं बताया कि इसमें अशर्फियाँ हैं। व्यापारी ने उसे अपने गोदाम की चाबी दी और कहा, जहाँ तुम चाहो अपने तेल की हाँड़ी रख दो। लौटना तो वहीं से उठा लेना। मित्र व्यापारी ने हाँड़ी की ओर देखा तक नहीं।
अलीख्वाजा ने हाँड़ी गोदाम में रख कर मक्के का सफर शुरू कर दिया किंतु वह ऊँट पर लाद कर कुछ छोटी-मोटी बिक्री की वस्तुएँ भी ले गया ताकि वहाँ भी कुछ व्यापार करे। हज के सारे कर्तव्य पूरे करने के बाद उसने वहीं अपनी छोटी-सी दुकान खोल दी। एक दिन उसकी दुकान पर दो व्यक्ति आए और कहने लगे कि तुम्हें यहाँ कम मुनाफा होगा, तुम्हारी यह चीजें काहिरा में ऊँचे दामों पर बिकेंगी।
अलीख्वाजा का कोई अपना संबंधी तो था ही नहीं जो बगदाद में उसकी वापसी की प्रतीक्षा करता। उसने मिस्र देश के सौंदर्य की प्रशंसा भी सुन रखी थी। वह फौरन अपनी वस्तुएँ ऊँट पर लाद कर व्यापारी दल के साथ काहिरा के लिए रवाना हो गया। वहाँ उसने अपनी वस्तुएँ काफी ऊँचे मूल्य पर बेचीं और खूब मुनाफा कमा कर अपना व्यापार और फैलाया। उसने काहिरा तथा मिस्र देश के अन्य स्थानों में खूब सैर-सपाटा भी किया। उसने नील नदी पर सदियों से बने अहराम (पिरामिड) भी देखे और काहिरा के दर्शनीय स्थानों को देखने के बाद मिस्र के अन्य नगरों की भी सैर की। इस तरह वहाँ कई महीने बिताने के बाद वह दमिश्क की ओर चला। रास्ते में वह रोड्स नामक द्वीप में भी गया और वहाँ पुराने जमाने में मुसलमानों द्वारा बनवाई हुई प्रसिद्ध मसजिदों को भी उसने देखा। फिर वह सैर के साथ व्यापार करता हुआ दमिश्क नगर पहुँचा। दमिश्क बड़ा सुंदर नगर था। वहाँ के बाजार और महल बहुत सजे हुए थे और उसके आसपास अनगिनत बाग थे जहाँ तरह-तरह के फल-फूल और जल कुंड, नहरे, झरने आदि थे। यहाँ का सौंदर्य देख कर वह बगदाद को भूल ही गया। कई वर्षों के बाद उसका वहाँ से भी जी भर गया। इसके बाद उसने हलब, मोसिल और शीराज आदि नगरों में जा कर निवास किया। इसके बाद वह बगदाद वापस आया। उसकी वापसी इस नगर में सात वर्षों के बाद हुई।
विदेश रह कर अलीख्वाजा ने केवल इतना व्यापार किया था कि उसका काम चलता रहा, बाकी समय में वह सैर-सपाटा करता रहता था। बगदाद आ कर उसे व्यापार जमाने के लिए अपनी बचाई हुई हजार अशर्फियों की जरूरत पड़ी। किंतु उसकी वापसी के कुछ दिन ही पहले उसके व्यापारी मित्र ने उसके साथ धोखा कर डाला था। हुआ यह कि एक दिन व्यापारी के आने के कुछ दिन ही पहले उसके व्यापारी मित्र ने उसके साथ धोखा कर डाला था। हुआ यह कि एक दिन व्यापारी की पत्नी ने कहा कि बहुत दिनों से घर की किसी चीज में जैतून का तेल नहीं पड़ा है, कल बाजार से लाना। व्यापारी को अलीख्वाजा की हाँड़ी याद आई और उसने कहा, अलीख्वाजा हज को जाते समय मेरे मालगोदाम में जैतून के तेल की हाँड़ी रख गया था। उसी में से थोड़ा-सा तेल ले ले। वैसे वह तेल बहुत पुराना हो गया है और खराब हो गया होगा। किंतु देखते हैं, शायद अच्छा हो।
उसकी पत्नी बोली, यह क्या करते हो? किसी की धरोहर को छूने में भी पाप लगता है। मुझे जैतून के तेल का ऐसा शौक नहीं है कि तुम मेरे लिए धर्म और नैतिकता के विरुद्ध कोई काम करो। व्यापारी ने कहा, तुम पागल हो गई हो। अगर पूरी हाँड़ी में से एक कटोरी तेल ले लिया तो क्या कमी हो जाएगी। फिर अलीख्वाजा का क्या पता? वह सात वर्ष पूर्व हज करने गया था। हज करने में सात वर्ष तो नहीं लगते। न मालूम वह कहाँ है और क्या मालूम आए या न आए। मालूम नहीं वह मर गया है या जिंदा है। स्त्री बोली, कुछ भी हो, उसका तेल नहीं छूना है। यह तुम कैसे कह सकते हो कि वह अब नहीं आएगा। सात वर्ष की अवधि कौन ऐसी अधिक होती है। संभव है कल ही आ जाए।
व्यापारी उस समय तो अपनी स्त्री के कहने से मान गया। किंतु अब उसने सोचा कि अलीख्वाजा ने जैतून के तेल की हाँड़ी क्यों रखवाई। ऐसी क्या बात थी उस तेल में जिससे उसे सँभाल कर रखवाने की आवश्यकता पड़ी। रात वह अपनी पत्नी से छुप कर गोदाम में यह देखने को गया कि वह तेल कैसा है और उसकी क्या दशा है। उसने गोदाम में जा कर मोमबत्ती जलाई ओर एक नई हाँड़ी ले कर उसने अलीख्वाजा की हाँड़ी को हिलाया और उसमें से अपनी हाँड़ी में तेल डालने लगा। तेल स्वाद में भी खराब था और उसमें से दुर्गंध भी आ रही थी किंतु हाँड़ी हिलाने से एक अशर्फी व्यापारी की हाँड़ी में आ गिरी। अब उसे तेल का भेद मालूम हुआ। उसने धीरे से सारा तेल अपनी हाँड़ी में उलट दिया और अलीख्वाजा की हाँड़ी की सारी अशर्फियाँ निकाल लीं। हाँड़ी का थोड़ा तेल गिर कर फैल भी गया था और अशर्फियाँ निकल जाने पर हाँड़ी में उसकी सतह नीची भी हो गई थी इसलिए उस व्यापारी ने फर्श अच्छी तरह साफ किया और हँडिया का खराब और बदबूदार तेल बाहर नाली में फेंक दिया। सुबह उठ कर उसने बाजार से जैतून का तेल खरीदा और उसे अलीख्वाजा की हँड़िया में मुँह तक भर कर यथास्थान रख दिया।
इसके एक महीने बाद ही अलीख्वाजा विदेश यात्रा से लौटा और उसने अपने व्यापारी मित्र से अपनी तेल की हँड़िया माँगी। व्यापारी ने कहा, भाई मैंने तो तुम्हारी हँड़िया देखी भी नहीं थी। तुम्हीं ने उसे गोदाम में रखा था। चाबी लो और जहाँ तुमने अपनी हँड़िया रखी हो वहाँ से ले जाओ।
अलीख्वाजा गोदाम में गया और अपनी हँड़िया ले कर अपने घर चला गया। उसने घर जा कर हँड़िया का तेल दूसरे बर्तन में डाला और अपनी अशर्फियाँ तलाश कीं लेकिन उसे एक भी अशर्फी नहीं मिली। वह उलटे पाँव व्यापारी मित्र के पास गया और बोला, इसमें रखी एक हजार अशर्फियाँ कहाँ हैं? व्यापारी ने कहा, कैसी अशर्फियाँ? अलीख्वाजा ने रुआँसे हो कर कहा, भाई, मैं ईश्वर की सौगंध खा कर कहता हूँ कि मैंने तेल की हँड़िया की तह में एक हजार अशर्फियाँ रखी थीं। अगर तुम ने उन्हें किसी जरूरत से खर्च कर दिया है तो कोई बात नहीं, बाद में वापस कर देना।
व्यापारी मित्र ने कहा, अलीख्वाजा, तुम कैसी बातें कर रहे हो। मैंने तुम्हारे लाते और ले जाते समय तुम्हारी हँड़िया पर निगाह तक नहीं डाली और तुम्हीं ने उसे गोदाम में रखा और वापस हो कर उसी जगह से उठाया था। मैं क्या जानूँ कि उसमें अशर्फियाँ थीं या क्या था। तुम बेकार ही मुझ पर झूठा आरोप लगाते हो। यह बातें न मित्रता की हैं न भलमनसाहत की। जब तुमने तेल की हाँड़ी राखी थी तो तुमने तेल ही रखने को कहा था, अशर्फियों की तो कोई बात तुमने नहीं की थी। तुमने तेल कहा था, वह तुम्हें मिल गया। अगर उसमें अशर्फियाँ होतीं तो वह भी तुम्हें मिल जातीं।
अलीख्वाजा ने उसके बहुत हाथ-पाँव जोड़े। उसने कहा, अशर्फियाँ न मिलीं तो मैं बरबाद हो जाऊँगा। मेरे पास इस समय कुछ भी नहीं है। उन्हीं अशर्फियों से मुझे व्यापार चलाना है। मुझ पर दया करो और मेरा माल मुझे दे दो। व्यापारी ने क्रुद्ध हो कर कहा, अलीख्वाजा, तुम बड़े नीच आदमी हो। मुझ पर झूठा चोरी का आरोप लगा रहे हो और बेईमानी से मुझसे हजार अशर्फियाँ ऐंठना चाहते हो। तुम भाग जाओ और कभी मेरे सामने न आना। झगड़ा बढ़ा तो मुहल्ले के बहुत से लोग जमा हो गए। कुछ लोग अलीख्वाजा को सच्चा समझते थे और कुछ व्यापारी को। शाम तक सारे बगदाद में अलीख्वाजा और उसके मित्र व्यापारी का झगड़ा मशहूर हो गया। और लोग तरह-तरह की बातें करने लगे।
अलीख्वाजा ने काजी के पास जा कर नालिश की। उसने व्यापारी को बुलाया और दोनों के बयान सुने। उसने अलीख्वाजा से कहा, क्या तुम्हारे पास तुम्हारी बात सिद्ध करने के लिए कोई गवाह है? अली ख्वाजा ने कहा, कोई नहीं, सरकार! मैंने भेद खुलने के डर से किसी को यह बात नहीं बताई थी। काजी ने व्यापारी से कहा कि क्या तुम ईश्वर की सौगंध खा कर कह सकते हो कि तुमने अशर्फियाँ नहीं लीं? उसने कहा, ईश्वर की सौगंध मैं अशर्फियों के बारे में कुछ नहीं जानता। यह सुन कर काजी ने उसे छोड़ दिया। अलीख्वाजा ने एक अर्जी खलीफा के नाम लिखी और खलीफा जब जुमे की नमाज को निकले तो उन्हें दे दी। उन्होंने अर्जी पढ़ कर कहा, कल तुम उस व्यापारी को ले कर दरबार में आना, तभी मैं निर्णय दूँगा।
उसी शाम को खलीफा अपने मासिक नियम अनुसार मंत्री जाफर के साथ वेश बदल कर प्रजा का हाल जानने को निकले। रात होने पर चाँदनी फैल गई। खलीफा ने देखा कि एक मैदान में दस-बारह लड़के खेल रहे हैं। उनमें से एक बालक ने, जो सबसे सुंदर और बुद्धिमान लगता था, कहा, आओ हम लोग अलीख्वाजा के मुकदमे का खेल खेलें। तुम लोगों में से कोई अलीख्वाजा बन कर हजार अशर्फियों का दावा करे, दूसरा व्यापारी बन कर प्रतिवाद करे, मैं काजी बन कर फैसला करूँगा। यह सुन कर खलीफा और जाफर छुप कर देखने लगे कि इस मुकदमे का, जिसकी अर्जी खलीफा को उसी दिन मिली थी, यह बालक किस तरह फैसला करते हैं।
वह सुंदर और बुद्धिमान बालक एक ऊँची जगह पर काजी की तरह शान से बैठ गया और दो-एक लड़के उसके प्यादे आदि हो गए। एक लड़का अलीख्वाजा बन कर हजार अशर्फियों के लिए रोता-पीटता आया। दूसरा लड़का व्यापारी बन कर गंभीरता से खड़ा हो गया। ऊँची जगह पर शान से काजी बने हुए लड़के ने अलीख्वाजा से पूछा, तुम्हारा क्या मामला है? उसने विस्तार में वही सब कुछ बताया जो उसको अलीख्वाजा ने बताया था। काजी ने दूसरे लड़के से पूछा, क्या तुम स्वीकार करते हो कि तुमने अलीख्वाजा की अशर्फियाँ ली हैं? उसने कहा, मैं भगवान की सौगंध खा कर कहता हूँ कि मैंने वह अशर्फियाँ देखी भी नहीं हैं। काजी बना हुआ लड़का बोला, मैं वह तेल की हँड़िया देखना चाहता हूँ जिसमें अलीख्वाजा का रखा हुआ तेल है। अलीख्वाजा बना हुआ लड़का कहीं से एक कुल्हिया उठा लाया और बोला, सरकार यही है वह हँड़िया और वह तेल जो मुझे व्यापारी के यहाँ से मिला था।
काजी बने हुए लड़के ने कुल्हिया में उँगली डाल कर झूठमूठ ही तेल को चखा। फिर वह बोला, मेरा खयाल था कि सात वर्ष पुराना तेल बिल्कुल सड़ गया होगा। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि इस तेल का स्वाद बहुत अच्छा है। यह पता लगाना कठिन है कि तेल नया है या पुराना। फिर उसने कहा कि बाजार से तेल के व्यापारियों को ला कर यहाँ हाजिर करो।
दो और बालक तेल के व्यापारी बन कर आ गए। काजी बने लड़के ने उन से पूछा कि क्या तुम तेल बेचते हो? उन्होंने कहा, हाँ सरकार, हमारा यही धंधा है। उसने कहा, तुम बता सकते हो कि जैतून का तेल कब तक खराब नहीं होता। उन्होंने कहा, अधिक से अधिक तीन वर्ष तक ठीक रहता है। फिर चाहे कितने ही यत्न से रखा जाय उसका स्वाद और गंध दोनों बिगड़ जाते हैं और ऐसी हालत में उसे फेंक दिया जाता है। काजी बना हुआ लड़का बोला, इस हाँड़ी के तेल को देख कर बताओ कि इस का रंग और स्वाद कैसा है। उन दोनों ने कुल्हियों में झूठमूठ उँगली डाल कर कल्पित तेल को सूँघा और चखा। फिर बोले, यह तेल बहुत अच्छा है, यह अधिक से अधिक एक साल का हो सकता है। काजी बना हुआ बालक बोला, तुम लोग बिल्कुल गलत हो। अलीख्वाजा सात वर्ष पहले यह तेल व्यापारी के गोदाम में रख कर गया था। व्यापारी बने हुए बालक बोले, सरकार जो चाहे कहें लेकिन सच्ची बात यह है कि यह तेल साल भर के अंदर ही कोल्हू से निकाला गया है। आप बगदाद भर से किसी भी व्यापारी को बुला कर दिखा लीजिए। कोई इस तेल को एक वर्ष से पुराना नहीं कहेगा।
अब काजी बने हुए लड़के ने प्रतिवादी बने हुए लड़के से कहा, अब तुम इस तेल को चख कर कहो कि तेल नया है या पुराना। उसने हाथ जोड़ कर कहा, सरकार मुझ पर दया कीजिए। मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ। मैंने एक महीने पहले ही इस हाँड़ी का तेल और अशर्फियाँ निकाल कर इसमें दूसरा तेल भरा था। काजी बने हुए लड़के ने कहा, तुमने धरोहर में बेईमानी की और भगवान की झूठी सौगंध भी खाई। तुमने फाँसी पाने का काम किया है और तुम्हें वही दंड मिलेगा। सिपाहियो, इसे पकड़ के ले जाओ। सिपाही बने हुए दो लड़के उसे घसीट कर ले गए। बाकी लड़के उछल-कूद कर के शोर मचाने लगे। अदालत का खेल खत्म हो गया।
खलीफा बालक की बुद्धि देख कर ताज्जुब में पड़ा। उसने जाफर से कहा, कल इन बालकों को दरबार में हाजिर करना। कल इसी बालक से फैसला करवाऊँगा। साथ ही बाजार से दो तेल के व्यापारियों को भी ले आना। अलीख्वाजा को कहलवा भेजना कि नालिश के लिए आए तो तेल की हँड़िया भी लेता आए। यह कह कर खलीफा महल में चला गया।
मंत्री ने सुबह उस मोहल्ले में जा कर वहाँ के मदरसे के अध्यापक से पूछा कि तुम्हारे यहाँ कौन-कौन लड़के पढ़ते हैं। उसके बताए हुए सभी लड़कों को मंत्री ने उन के घरों से ले कर दरबार में पहुँचा दिया। बच्चों के माता-पिता घबराए तो मंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया कि बालकों को कोई हानि नहीं पहुँचाई जाएगी। इस पर संतुष्ट हो कर उन के अभिभावकों ने उन्हें अच्छे वस्त्र पहना कर दरबार में भेज दिया। खलीफा ने कहा, तुम लोगों ने कल शाम जो मुकदमे का खेल खेला था उसमें कौन लड़का काजी बना था? काजी बने लड़के ने सिर झुका कर कहा, मैं बना था। खलीफा ने उसे अपने पास बिठाया और कहा, तुम कल ही की तरह आज असली मुकदमे का फैसला करना। तुम्हीं को सारी सुनवाई भी करनी है।
संबंधित पक्षों के आने पर खलीफा ने घोषणा की, इस मुकदमे की सुनवाई और फैसला मैं नहीं करूँगा बल्कि यह बच्चा करेगा। अतएव बालक ने दोनों पक्षों के बयान लिए। व्यापारी ने कहा, भगवान की सौगंध मुझे अशर्फियों के बारे में कुछ नहीं मालूम। बच्चे ने कहा, सौगंध खाने के लिए तुझे किसने कहा? मैं उस हाँड़ी को देखना चाहता हूँ जिसमें तेल रखा है। हाँड़ी बालक के सामने रखी गई। बालक के कहने से खलीफा ने खुद भी तेल को चखा और तेल के व्यापारियों को भी चखाया। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि तेल अच्छा है और एक वर्ष के अंदर ही तैयार किया गया है। अब बालक ने प्रतिवादी व्यापारी से कहा, तुम्हारी सौगंध झूठी है। अलीख्वाजा ने सात वर्ष पहले तेल रखा था इसमें नया तेल कहाँ से आ गया। व्यापारी ने स्वीकार लिया कि उसने तेल बदला है और अशर्फियाँ निकाली हैं। बालक ने हाथ जोड़ कर खलीफा से कहा, सरकार, आपके आदेश से निर्णय मैंने कर लिया किंतु आज के मुकदमे में दंड देना या न देना आप के हाथ में है। खलीफा ने कहा, मैं वही दंड नियत करता हूँ जो तुमने किया था। व्यापारी की संपत्ति जब्त करके उसे फाँसी दी जाए और उसकी संपत्ति में से एक हजार अशर्फियाँ अलीख्वाजा को दी जाएँ। उसने काजी बननेवाले बालक को एक हजार अशर्फियाँ का इनाम दिया और अन्य बालकों को भी कुछ इनाम दिया।
यह कहानी कह कर मलिका शहरजाद ने अगले दिन नई कहानी शुरू कर दी।