शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में बगदाद में एक धनी व्यापारी था। उस का एक ही पुत्र था जिसका नाम अबुल हसन था। व्यापारी बड़ा कंजूस था। वह धन एकत्र ही करता था, खर्च बहुत कम करता था। इसलिए जब वह मरा तो उस ने बेहद धन-दौलत छोड़ी। अबुल हसन का स्वभाव इस से उलटा था। उस ने जब पिता का धन पाया तो दोनों हाथों से खर्च करने लगा। उस ने अपने मित्रों को खूब पैसा दिया। फिर उस ने अपनी दौलत के दो भाग किए। एक से उस ने मकान खरीदे जिनका किराया उस के सारे जीवन के लिए काफी था। दूसरे को उस ने पूर्ववत रागरंग पर लुटाना शुरू कर दिया। उस के यहाँ हमेशा नाच-गाना होता था और शराब चलती थी। वह अपने मित्रों के साथ अति मूल्यवान पात्रों में स्वादिष्ट भोजन करता था। नाच-गाने की महफिलों के साथ भाँड़ और अन्य लोग उसे तरह-तरह के तमाशे दिखाते थे।

इस प्रकार एक ही वर्ष में अबुल हसन ने अपने पिता का सारा संचित धन खर्च कर डाला। जब उस ने मित्रों को दावतें देना छोड़ दिया तो उन्होंने भी उस के घर आना छोड़ दिया। यद्यपि वे सब अबुल हसन के कारण धनवान हो गए थे तथापि उन्होंने खराब भावना प्रदर्शित की। वे उस से राह-बाट में मुँह चुराने लगे। अगर वह किसी को रोक कर बात भी करता तो वह कोई बहाना बना कर अपनी राह चला जाता।

अबुल हसन को अपने मित्रों की इस अमैत्री से बड़ा क्षोभ हुआ। अक्सर पछताया करता कि मैं ने ऐसे लोगों पर क्यों धन लुटाया जिनकी आँखों में बिल्कुल शील नहीं है। एक दिन वह इसी चिंता में अपनी माँ के पास बैठा था। माँ ने उस से उदासी का कारण पूछा, क्योंकि वह साधारणतः प्रफुल्लित रहता था। वह कुछ न बोला तो माँ ने कहा, मैं जानती हूँ कि तुम्हें क्या दुख है। तुमने इस बीच बड़ी मूर्खता की कि अपना सारा धन लुटा दिया। मैं जानती थी कि तुम एक दिन धनहीन हो जाओगे। मैं तुम्हें तुम्हारी हरकतों से रोकती भी थी किंतु तुम तो अपनी लफंगे दोस्तों के फेर में पड़े थे। तुमने मेरी बात नहीं मानी। अब वे स्वार्थी और नीच लोग तुम्हारी बात कहाँ पूछते होंगे।

अबुल हसन ने कहा, वे मुझ से बात तो कम करते हैं किंतु वे नीच नहीं मालूम होते। संभव है कि वे अधिक व्यस्त हो गए हैं। मैं उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे ॠण माँगता हूँ। मुझे विश्वास है कि वे इस से इनकार नहीं करेंगे। यह कह कर वह एक-एक करके उन सभी के पास गया और उनसे व्यापार आरंभ करने के लिए ॠण माँगने लगा। किंतु सबने टका-सा जवाब दे दिया यद्यपि वह धन जिस पर वे ऐश कर रहे थे अबुल हसन ही का था। उनमें से कई ने तो अबुल हसन को फटकार भी दिया।

अब वह माँ के पास आ कर बोला, तुम ठीक कहती थीं। वे सभी बड़े दुष्ट और नीच हैं। मैं अब किसी व्यक्ति को मित्र नहीं बनाऊँगा। उस ने अपने बचे हुए धन को सँभाला, कुछ मुल्यवान गृह सामग्री बेच कर कुछ रुपया इकट्ठा किया और छोटा-मोटा व्यापार शुरू किया। शाम को वह नदी के पुल पर चला जाता और एक परदेशी को घर ले आता, उसे स्वादिष्ट भोजन कराता और आधी रात तक उस से बातें करता। फिर सुबह उसे विदा करके कहता कि अब तुम कभी मेरे घर न आना।

उस की यह हरकत इसलिए थी कि उसे अकेले भोजन करने की आदत नहीं थी। इसलिए खाने पर किसी को साथ रखता। मैत्री वह करना भी नहीं चाहता था। उस के मेहमानों में से अगर उसे संयोगवश कोई व्यक्ति बाद में किसी स्थान पर मिल जाता था तो वह उस की ओर से मुँह फेर लेता था और अगर वह अबुल हसन से कुछ बात करना चाहता था तो यह ऐसा बन जाता जैसे उसे पहले कभी देखा ही नहीं हो।

एक दिन अपनी दैनिक चर्या के अनुसार अबुल हुसन पुल पर किसी अकेले परदेशी की प्रतीक्षा में बैठा था। इसी समय खलीफा हारूँ रशीद केवल एक दास को ले कर उधर से निकला। खलीफा का नियम था कि वह कभी-कभी वेश बदल कर प्रजा का हाल देखने के लिए निकला करता था। इस समय भी उसे पहचानना संभव नहीं था। खलीफा के प्रशासन में मंत्रियों और अधिकारियों की कमी नहीं थी किंतु वह प्रजा की कठिनाइयाँ अपनी आँखों से देखना चाहता था।

इस समय खलीफा ने मोसिल के व्यापारी का रूप धरा था। और किसी आकस्मिक दुखदायी स्थिति से निपटने के लिए एक विशालकाय दास भी अपने साथ रखा था। अबुल हसन ने यही समझा कि वह मोसिल से आनेवाला कोई व्यापारी है। वह उस के समीप गया और सलाम करने के बाद उस से कहने लगा कि आप परदेशी हैं, मुझ पर इतनी कृपा कीजिए कि मेरी कुटिया पर चल कर रूखा-सूखा भोजन कीजिए और रात को वहीं शयन भी कीजिए।

खलीफा को आश्चर्य हुआ कि कोई ऐसा दानवीर हो सकता है जो खुद जा कर परदेशियों को अपने घर आ कर भोजन और शयन को कहे। अबुल हसन का चेहरा-मोहरा और बातचीत का ढंग भद्रतापूर्ण था। खलीफा की इच्छा हुई कि उस के बारे में कुछ विस्तारपूर्वक जाने। इसलिए उस ने अबुल हसन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। अबुल हसन ने उसे एक सजे-सजाए कमरे में बिठाया, जहाँ झाड़-फानूस आदि लगे थे। फिर उस के सामने स्वच्छ और मूल्यवान पात्रों में भाँति-भाँति के स्वादिष्ट व्यंजन ला कर रखे। उस की माँ पाक कला में प्रवीण थी और अपने पुत्र की प्रसन्नता के विचार से खुद ही भोजन बनाती थी। उस ने तीन तरह के सालन परोसे। एक मुर्गे के मांस का, एक कबूतर के मांस का और एक भुने हुए मांस का। भोजन की मात्रा इतनी अधिक थी कि कई व्यक्ति उस से तृप्त हो सकते थे। अबुल हसन खलीफा के सामने बैठ कर उस के साथ भोजन करने लगा। खलीफा ने भोजन की बड़ी प्रशंसा की।

भोजनोपरांत खलीफा के दास ने जल पात्र ला कर दोनों के हाथ धुलाए। फिर अबुल हसन की माँ ने बादाम और अन्य मेवे भिजवाए। कुछ रात ढलने पर अबुल हसन शराब की सुराहियाँ और प्याले लाया और उधर माँ से कहा कि मेहमान के गुलाम को पेट भर भोजन करा दे। फिर उस ने एक प्याला भर कर खलीफा को दिया और खलीफा के पीने के बाद प्याले में बची शराब खुद पी गया। खलीफा ने भी इस के जवाब में ऐसा ही किया। खलीफा ने अबुल हसन का शिष्ट व्यवहार देख कर उस का नाम, परिवार आदि पूछा। उस ने कहा कि मेरी कथा विचित्र है। खलीफा ने उसे सुनाने पर जोर दिया।

अबुल हसन बोला, मेरा नाम अबुल हसन है। मेरा स्वर्गीय पिता एक साधारण किंतु खाता-पीता व्यापारी था। उस के मरने पर उस का धन मुझे मिला। मैं ने अपनी नादानी में उस धन का अपव्यय कर दिया। मेरे पास कई दुष्ट प्रकृति के लोग मित्र बन कर आ गए और मैं ने उन पर अपना सारा धन लुटा डाला। जब मेरे पास कुछ नहीं रहा और उन्होंने देखा कि मैं अंदर से ढोल की तरह खोखला हो गया हूँ तो उन्होंने मेरे घर आना-जाना छोड़ दिया। मेरे पास धन की कमी हो गई थी। इसलिए व्यापार करने के लिए मैं ने उनसे उधार माँगा किंतु सभी ने मुझे धता बताया। मैं ने समझ लिया कि यह सभी लोग बड़े स्वार्थी और लज्जाहीन हैं। मैं ने भी उनसे संबंध तोड़ लिया और प्रण किया कि बगदाद के कमीने निवासियों से कोई सरोकार नहीं रखूँगा। हर रात को एक परदेसी को अपने साथ ला कर भोजन कराऊँगा और सवेरे उसे विदा करने के बाद उस से भी आगे के लिए कोई संबंध नहीं रखूँगा। इसी तरह मैं आज तुम्हें लाया हूँ।

खलीफा अबुल हसन की बातों से बहुत खुश हुआ। उस ने कहा, भाई, तुमने यह बड़ा अच्छा किया कि ऐसे स्वार्थी और नीच मित्रों का साथ छोड़ दिया। अब तुम वास्तव में सुख से होंगे। तुम्हारी यह आदत भी बड़ी अच्छी है कि एक विदेशी को केवल एक रात के लिए मेहमान बनाते हो फिर उस से कोई संबंध नहीं रखते। सच पूछो तो मुझे तुम्हारे भाग्य पर ईर्ष्या हो रही है।

फिर वह काफी देर तक मैत्री वार्ता और हँसी-मजाक करते रहे। फिर खलीफा ने कहा, अब सोना चाहिए क्योंकि कल मुझे बहुत दूर की यात्रा करनी है। मैं सुबह तुम्हारे जागने के पहले चला जाऊँगा। किंतु तुमने बड़ी सुंदरता से मेरा आतिथ्य सत्कार किया है। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे अहसान का बदला दूँ। तुम्हारी कोई इच्छा हो तो कहो। अबुल हसन ने कहा, मुझे भगवान ने मेरी जरूरतों से ज्यादा दिया है, मेरी कोई इच्छा नहीं। मेरा तुम पर कोई अहसान नहीं है। परदेशियों का सत्कार कर के मुझे खुद ही खुशी होती है। यह तो तुम्हारी कृपा है कि तुमने मुझे वह खुशी दी है।

खलीफा ने कहा, फिर भी तुम्हारी कोई इच्छा तो होगी ही। अबुल हसन ने कहा, मेरी इच्छा सुनोगे तो मुझ पर हँसोगे और मुझे पागल समझोगे। खलीफा ने फिर भी जोर दिया तो अबुल हसन बोला, तुम जानते ही हो कि बगदाद में हजारों गलियाँ हैं। प्रत्येक गली में एक या एक से अधिक मसजिदें हैं। हर एक मसजिद में एक मुअज्जिन होता है जो पाँचों वक्त नमाज के लिए अजान दिया करता है। इस गली की मसजिद का मुअज्जिन एक बूढ़ा है। वह बड़ी दुष्ट प्रकृति का आदमी है और मुहल्लेवालों की हानि करके और उन्हें कष्ट देने के उपाय सोचता रहता है। उस के चार साथी भी हैं जो उस की दुष्टता में उस का साथ देते हैं। वे उसी मुअज्जिन के घर में जा कर अपनी दुष्टतापूर्ण योजनाएँ बनाते हैं। उन लोगों से सभी को कुछ न कुछ क्षति पहुँची है। मुझे भी उनकी वजह से परेशानी हो रही है। मुझे तो उन लोगों की सूरत देख कर भी घृणा होती है।

खलीफा ने कहा, यह तो तुमने किस्सा बताया, अपनी इच्छा तो नहीं बताई। अबुल हसन बोला, अगर भगवान अपनी शक्ति से मुझे खलीफा हारूँ रशीद की तरह तख्त पर बिठा दे तो मैं इन पाँचों को यथोचित दंड दूँगा। खलीफा ने कहा, उन्हें क्या दंड दोगे? अबुल हसन बोला, बूढ़े को चार सौ कोड़े और उस के साथियों को सौ-सौ कोड़े लगवाऊँगा।

खलीफा बड़ा विनोदप्रिय था। उसे मजाक का एक मौका मिला। उस ने कहा, मित्र, मैं भी चाहता हूँ कि ऐसे दुष्टों को ऐसा ही कठोर दंड मिले। ईश्वर की लीला अपरंपार है। कुछ असंभव नहीं कि तुम्हारी इच्छा पूरी हो और तुम पाँचों दुष्टों को यथोचित दंड दे सको। मैं तो व्यापारी मात्र हूँ और वह भी परदेशी। मुझे अधिकार होता तो मैं उन लोगों को तुम्हरे हाथ से दंड दिलवाता। अबुल हसन ने कहा, तुम निश्चय ही मुझे पागल समझ कर मेरा मजाक उड़ा रहे हो। भला मुझे ऐसा अधिकार कैसे मिल सकता है? खलीफा ने कहा, मैं मजाक नहीं उड़ा रहा, विशेषतः तुम्हारे जैसे उदार और शिष्ट व्यक्ति का कैसे मजाक उड़ाऊँगा जिसने मेरा ऐसा सत्कार किया है। खलीफा को तुम्हारी बात मालूम होगी तो वह भी तुम्हारी बात का समर्थन करेगा।

फिर खलीफा ने कहा, अब सोना चाहिए, बहुत रात हो गई है। अबुल हसन बोला, ठीक बाते है। यह थोड़ी-सी शराब रह गई है। हम लोग उसे खत्म कर दें फिर सोने के लिए जाएँ। हाँ, एक बात कहनी है। सवेरे तुम्हारी आँख खुले तो मुझ से विदा लिए बगैर चले जाना और दरवाजा बंद कर जाना। खलीफा ने कहा, अच्छी बात है। लेकिन एक बात मेरी चलेगी। अभी तक तुमने प्याले भर-भर कर शराब पिलाई है, यह बाकी बची शराब मैं तुम्हें पिलाऊँगा। अबुल हसन ने मान लिया। खलीफा ने एक प्याला खुद पिया फिर एक प्याला भर कर अबुल हसन को दिया और उस में नजर बचा कर बेहोशी की दवा, जिसे वह अपने साथ लाया था, मिला दी। बेहोशी की दवा बहुत तेज थी। उस ने फौरन अपना असर दिखाया। अबुल हसन ने खाली प्याला भी बड़ी कठिनाई से जमीन पर रखा। उस का सिर घुटनों में जा लगा। खलीफा यह देख कर खूब हँसा।

फिर खलीफा ने अपने दास को बुलाया। वह भोजन कर के आज्ञा की प्रतीक्षा में खड़ा ही था। खलीफा ने कहा, इस आदमी को उठा कर कंधे पर रख कर ले चल। और इस मकान को अच्छी तरह पहचान ले। जब मैं आदेश दूँ तो महल से इस आदमी को इसी तरह ला कर इसी जगह छोड़ जाना। दास ने आसानी से अबुल हसन को कंधे पर लाद लिया और खलीफा ने चलते समय मकान का दरवाजा बंद कर दिया। महल में जा कर वह दास को लिए हुए चोर दरवाजे से अंदर पहुँचा। वहाँ बीसियों दास-दासियाँ खलीफा के शयन कक्ष के बाहर उस की प्रतीक्षा में थे।

खलीफा ने आज्ञा दी, इस आदमी को मेरे जैसे शयनवस्त्र पहनाओ और मेरे पलंग पर सुलाओ। तुम सब लोग रात भर जागते रहो। सुबह जागने के समय तुम लोग उसी प्रकार इसे प्रणामादि करना जैसे मुझे करते हो। इसकी आज्ञा का पालन भी यथावत करना ओर इसे खलीफा कह कर संबोधित करना। उन सबों ने कहा, बहुत अच्छा, हम ऐसा ही करेंगे। फिर खलीफा बाहर आया और उस ने मंत्री को उस के घर से बुला कर कहा, मेरे पलंग पर सोए हुए इस आदमी को देख लो। कल यह मेरे राजसी वस्त्र पहन कर मेरी जगह सिंहासन पर बैठेगा। तुम सब लोग इस के साथ ऐसा ही बरताव करना जैसा मेरे साथ करते हो। मेरे कोष से जो कुछ इनाम वगैरह किसा को दिलाए फौरन दे देना और इसी तरह जो दंड किसी को दिलवाए वह भी देना। सवेरे सभी दरबारी इसका स्वागत ऐसे ही करें जैसा मेरा करते हैं। फिर उस ने महल के प्रबंधक मसरूर को भी आदेश दिया कि हर सुबह जिस तरह मुझे नमाज पढ़ने के लिए जगाया करते हो वैसे ही इसे भी जगाया करना और अन्य व्यवहार भी ऐसे ही करना।

यह आदेश दे कर खलीफा बगल के एक कमरे में जा कर सो रहा। सुबह वह जल्दी ही जाग गया और परदे के पीछे छुप कर देखने लगा कि अबुल हसन क्या करता है और क्या बोलता है। उधर खलीफा के आदेशानुसार सारे कर्मचारी और दास-दासियाँ खलीफा के अपने शयन कक्ष में अबुल हसन की सेवा के लिए एकत्र थे। जब नमाज का समय हुआ तो मसरूर ने, जो अबुल हसन के सिरहाने खड़ा हुआ था, उस की नाक के नीचे सिरके में भीगा हुआ स्पंज रखा। सिरके की तेज गंध से अबुल हसन को छींक आई और उस ने खखार कर बलगम निकालना चाहा तो एक दासी ने आगे बढ़ कर उसे एक सोने के उगालदान में ले लिया। यह इसलिए किया जाता था कि नीचे बिछे हुए मूल्यवान कालीन गंदे न हो जाएँ और खलीफा को नित्य प्रति इसी तरह सिरके में डूबा स्पंज सुँघा कर जगाया जाता था ताकि वह उठ कर नमाज पढ़े।

अबुल हसन ने आँखें खोल कर अतिशय सुसज्जित शयन कक्ष देखा जिस में कीमती परदे लगे थे और जिस की दीवारों और छत पर रंग-बिरंगी सुंदर चित्रकारी की हुई थी। उस ने यह भी देखा कि अति सुंदर नवयौवना दासियाँ बीसियों की संख्या में खड़ी हैं, किसी के हाथ में उगालदान है किसी के हाथ में मोरछल, कइयों के हाथों में वाद्य यंत्र थे। महलों की रखवाली करनेवाले ख्वाजासरा (जनखे) भी सुनहरी पोशाक पहने खड़े थे। उस ने अपने पलंग के लिहाफ और चादर को भी देखा कि वे गुलाबी रंग के कमख्वाब नामी कपड़े के बने थे और उनमें हीरे-मोती की झालरें लटकती थीं। इसी प्रकार मसहरी आदि भी सोने की बनी हुई थी। पास ही एक तिपाई पर खलीफा का ताज रखा था।

यह देख कर अबुल हसन ने सोचा कि यह सब कुछ वास्तविक नहीं हो सकता। उस ने सोचा, गत रात्रि को मैं ने खलीफा होने की बात कहीं थी इसीलिए मुझे स्वप्न में यह चीजें दिखाई दे रही हैं। यह सोच कर वह फिर आँखें बंद करके सोने का प्रयत्न करने लगा। इस पर एक ख्वाजासरा पास आया और हाथ जोड़ कर बोला, हे दीनबंधु कृपासिंधु प्रजावत्सल महाराज, यह समय सोने का नहीं है। सूर्योदय होने ही वाला है। कृपा करके शैय्या त्याग करें और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आराधना के लिए नमाज पढ़ें। अबुल हसन को यह सुन कर आश्चर्य हुआ किंतु उस ने अब भी इसे स्वप्न समझा और एक बार खोल कर फिर आँखें बंद कर लीं। ख्वाजासरा ने फिर विनय की, सरकार सुबह की नमाज का समय हो गया है। अब तुरंत शैय्या त्याग करें वरना नमाज का समय निकल जाएगा और आप को पश्चात्ताप होगा।

अब अबुल हसन को विश्वास हो गया कि यह स्वप्न नहीं है। स्वप्न इतनी देर तक ठहरा नहीं करता। उस ने आँख खोल कर देखा तो सुबह का उजाला फैल रहा था। उसे दिन के प्रकाश में भी वही चीजें दिखाई दीं जो कुछ देर पहले दीपकों के प्रकाश में देखी थीं। वह पलंग से उठ गया और बड़ा प्रसन्न हुआ क्योंकि उसे विश्वास हो गया था कि भगवान ने उस की सुन ली है और खलीफा का पद उसे प्रदान किया है। परदे के पीछे बैठा हुआ खलीफा अलग उसी दशा का आनंद ले रहा था। इतने में एक दासी ने सामने आ कर उस के पाँव चूमे और गाने-बजानेवाली दासियों ने मधुर संगीत छेड़ दिया। संगीत की लहरियों ने उसे आत्म-विस्मृत कर दिया और वह सोचने लगा कि यह सब क्या हो रहा है। उस ने आँखों पर हथेलियाँ रख लीं और सोचने लगा कि यह सुनहरे वस्त्र पहने हुए दास और यह मनमोहिनी नवयौवना दासियाँ और यह मधुर संगीत क्या है और कहाँ से आ गया। यह भी स्वप्न तो नहीं है, यह सोच कर वह अपनी आँखों पर हथेलियाँ रगड़ने लगा।

इतने में ख्वाजासरा मसरूर आया और सिर झुका कर बोला, सरकार, क्या कारण है कि आज आप ने नमाज अदा नहीं की? क्या रात को आप की नींद में व्याघात हुआ था? क्या, भगवान न करे, आप का शरीर कुछ अस्वस्थ है? अब सरकार उठ कर नित्य कर्म करें और फिर दरबार में पदार्पण करें। वहाँ सभी दरबारी और सामंत आप की राह देख रहे हैं। मसरूर की बातें सुन कर अबुल हसन को और विश्वास हुआ कि मैं जाग रहा हूँ और यह सब कुछ स्वप्न नहीं है किंतु उस की समझ में अब भी नहीं आया कि मुझे खलीफा पद कैसे प्राप्त हो गया। उस ने मसरूर से पूछा, तुमने यह बातें किस आदमी से कही हैं? किसे तुम बादशाह और खलीफा कहते हो? मैं ने तो तुम्हें कभी नहीं देखा। तुमने शायद किसी और के धोखे में मुझे खलीफा समझ लिया है?

मसरूर ने कहा, पृथ्वीपालक, आप यह क्या कह रहे हैं? क्या आप इस सेवक की परीक्षा ले रहे हैं? क्या आप ही खलीफा नहीं हैं? और क्या समस्त संसार में आ पका आदेश नहीं माना जाता? आप की कृपा हम सब पर रहे। जान पड़ता है आप ने रात कोई दुःस्वप्न देखा है जिस से यह अजीब बातें कर रहे हैं।

मसरूर की यह बातें सुन कर अबुल हसन हँसने लगा। हँसते-हँसते वह मसनद पर पीठ के बल गिर पड़ा। खलीफा को भी जोरों की हँसी आई और वह ठट्टा मार कर हँसनेवाला ही था कि उस ने यह सोच कर अपनी हँसी दबा ली कि कहीं अबुल हसन आवाज न पहचान पाए। अबुल हसन बहुत देर तक हँसता रहा। फिर वह उठ बैठा और एक लड़के को, जिस का रंग मसरूर की तरह काला था, बुला कर पूछने लगा कि सच बता मैं कौन हूँ। उस के लड़के ने सविनय निवेदन किया कि आप खलीफा हैं। अबुल हसन ने कहा, तू बड़ा झूठा है, इसी कारण तेरा रंग काले कुत्ते जैसा हो गया है। लड़के ने कहा, सरकार विश्वास कीजिए कि मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, आप वास्तव में खलीफा हैं।

अबुल हसन की समझ में अब भी नहीं आ रहा था कि यह सब लोग क्या कह रहे हैं। उसे फिर स्वप्न देखने का संदेह हुआ। उस ने पास खड़ी हुई एक दासी से कहा, हाथ बढ़ा कर मेरा हाथ अपने हाथ में ले और दाँतों से मेरी उँगली का पोर काट। दासी तो यह जानती थी कि खलीफा छुप कर सारी बातें देख रहा है। वह आगे बढ़ी और उस ने अबुल हसन की उँगली का पोर धीमे से दाँत के तले दबाया। कष्ट हुआ तो अबुल हसन ने अपना हाथ खींच लिया और कहा, हे भगवान, मैं रातोंरात ही खलीफा किस तरह बन गया। फिर उस ने एक बार और दासी से पूछा, तुझे भगवान की सौंगध है, सच कह कि क्या मैं वास्तव में तेरा स्वामी और खलीफा हूँ। उस ने कहा, निस्संदेह आप हमारे स्वामी खलीफा हैं।

जब अबुल हसन उठने लगा तो एक दास ने उसको सहारा दिया। जब वह खड़ा हुआ तो सारे महल में जयघोष उठने लगा और सारे ख्वाजासराओं और दासियों ने आगे बढ़ कर दुआएँ दीं कि भगवान आज दिन भर आप पर प्रसन्न रहें। अबुल हसन सोचता रहा कि यह क्या बात है, कल तक मैं अबुल हसन था आज खलीफा कैसे बन गया, कैसे मुझे अचानक ही यह महान पद मिल गया। फिर सेवकों ने उसे राजसी परिधान पहनाया और दरवाजे तक दोनों ओर पंक्तिबद्ध हो कर खड़े हो गए। शाही महल के प्रबंध कर ख्वाजासरा मसरूर उस के आगे चलता हुआ उसे दरबार तक ले गया।

अबुल हसन दरबार के कक्ष के अंदर जा कर सिंहासन के समीप इस प्रतीक्षा में खड़ा हो गया कि उसे सिंहासन पर चढ़ाया जाए। दो बड़े सरदारों ने उस की बाँह पकड़ कर सहारा दिया और उसे तख्त पर बिठा दिया।

वह ज्यों ही तख्त पर बैठा कि चारों ओर से सलामी की आवाजें उठने लगीं। वह यह जयघोष सुन कर बड़ा प्रसन्न हुआ। उस ने अपने दाएँ-बाएँ निगाह डाली तो देखा कि राज्य के बड़े-बड़े सरदार सिर झुकाए और हाथ बाँधे खड़े हैं। उस ने एक-एक कर के सारे सरदारों का अभिवादन स्वीकार किया। फिर राज्य का मंत्रि, जो सिंहासन के पीछे खड़ा था और दरबार का इंतजाम देख रहा था, अबुल हसन के सामने आया और फर्शी सलाम करके उसे दुआ देने लगा, भगवान आप को लाखों बरस की उम्र दे और सदैव अपनी कृपा आप के ऊपर बनाए रखे। भगवान करे कि आप के मित्र और शुभचिंतक सुखी और आप के शत्रु परास्त रहें। यह सब देख कर अबुल हसन को पूर्ण विश्वास हो गया कि मैं स्वप्न नहीं देखता, वास्तव में खलीफा बन गया हूँ।

फिर मंत्री ने उस से कहा कि महल के बाहर सेना पंक्तिबद्ध खड़ी है, आप उस का निरीक्षण करें। अबुल हसन सारे सरदारों के साथ बाहर गया और उस ने एक ऊँचे चबूतरे से फौज की सलामी ली। वह फिर दरबार में वापस हुआ और मंत्री ने प्रजा के आवेदन पत्र उस के सामने पेश किए। उनकी समझ में जैसा आया उसे वैसा ही फैसला किया। फिर मंत्री ने राज्य के समाचार सुनाने शुरू किए। अभी यह समाचार पूरे नहीं हुए थे कि अबुल हसन ने शहर के कोतवाल को बुलाया। वह आया तो उसे अपनी गली का नाम बता कर कहा, तुम सिपाहियों को ले कर वहाँ जाओ। वहाँ की मसजिद में एक बूढ़ा मुअज्जिन है। उसे तलवे ऊपर करके उन पर चार सौ डंडे लगवाओ और उस के चार साथियों को सौ कोड़े लगवाओ। फिर उन सबों को ऊँट पर पीछे की ओर मुँह �