रात बीत गई, पहर भर दिन चढ़ने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह का लश्कर अगले पड़ाव पर जा पहुंचा और उसके घण्टे भर बाद तेजसिंह भी रथ लिये हुए आ पहुंचे। रथ जनाने डेरे के आगे लगाया गया, पर्दा करके जनानी सवारी (किशोरी, कामिनी और कमला) उतारी गईं और रथ नौकरों के हवाले करके तेजसिंह राजा साहब के पास चले गये।

आज के पड़ाव पर हमारे बहुत दिनों के बिछुड़े हुए ऐयार लोग अर्थात् पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और पण्डिल बद्रीनाथ भी आ मिले क्योंकि इन लोगों को राजा साहब के चुनारगढ़ जाने की इत्तिला पहिले ही से दे दी गई थी। ये लोग उसी समय उस खेमे में चले गये जहां कि राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह एकान्त में बैठे बातें कर रहे थे। इन चारों ऐयारों को आशा थी कि राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ ही साथ चुनारगढ़ जायेंगे मगर ऐसा न हुआ, इसी समय कई काम उन लोगों के सुपुर्द हुए और राजा साहब की आज्ञानुसार वे चारों ऐयार वहां से रवाना होकर पूरब की तरफ चले गये।

राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह को इस बात की आहट लग गई थी कि मनोरमा भेष बदले हुए हमारे लश्कर के साथ चल रही है और धीरे-धीरे उसके मददगार लोग भी रूप बदले हुए लश्कर में चले आ रहे हैं मगर तेजसिंह को उसे गिरफ्तार करने का मौका नहीं मिलता था। उन्हें इस बात का पूरा-पूरा विश्वास था कि मनोरमा निःसन्देह किसी लौंडी की सूरत में होगी मगर बहुत-सी लौंडियों में से मनोरमा को जो बड़ी धूर्त और ऐयार थी छांटकर निकाल लेना कठिन काम था। मनोरमा के न पकड़े जाने का एक सबब और भी था, तेजसिंह इस बात को तो सुन ही चुके थे कि मनोरमा ने बेवकूफ नानक से तिलिस्मी खंजर ले लिया है, अस्तु तेजसिंह का खयाल यही था कि मनोरमा तिलिस्मी खंजर अपने पास अवश्य रखती होगी। यद्यपि राजा साहब की बहुत-सी लौंडियां खंजर रखती थीं मगर तिलिस्मी खंजर रखने वालों को पहिचान लेना तेजसिंह मामूली काम समझते थे और उनकी निगाह इसलिए बार-बार तमाम लौंडियों की उंगलियों पर पड़ती थी। तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अंगूठी किसी न किसी की उंगली में जरूर दिखाई दे जायगी और जिसकी उंगली में वैसी अंगूठी दिखाई देगी उसे ही मनोरमा समझकर तुरंत गिरफ्तार कर लेंगे।

यह सब-कुछ था मगर मनोरमा भी कुछ कम चांगली न थी और उसकी होशियारी और चालाकी ने तेजसिंह को पूरा धोखा दिया। इस बात का मनोरमा भी पहले ही से विचार कर चुकी थी कि मेरे हाथ में तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अंगूठी अगर तेजसिंह देखेंगे तो मेरा भेद खुल जायगा, अतएव उसने बड़ी मुस्तैदी और हिम्मत का काम किया अर्थात् इस लश्कर में आ मिलने के पहिले ही उसने इस बात को आजमाया कि तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अंगूठी केवल उंगली ही में पहिरने से काम देती है या बदन के किसी भी हिस्से के साथ लगे रहने से उसका फायदा पहुंचता है। परीक्षा करने पर जब उसे मालूम हुआ कि वह तिलिस्मी अंगूठी केवल उंगली ही में पहिरने के लिए नहीं है बल्कि बदन के किसी भी हिस्से के साथ लगे रहने से ही अपना काम कर सकती है, तब उसने अपनी जंघा चीर के तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अंगूठी उसमें भर दी और ऊपर से सी कर तथा मरहम-पट्टी लगाकर आराम कर लिया। इसी सबब से आज तिलिस्मी खंजर रहने पर भी तेजसिंह उसे पहिचान नहीं सके, मगर तेजसिंह का दिल इस बात को भी कबूल नहीं कर सकता था कि मनोरमा इस लश्कर में नहीं है, बल्कि मनोरमा के मौजूद होने का विश्वास उन्हें उतना ही था जितना पढ़े-लिखे आदमी को एक और एक दो होने का विश्वास होता है।

आज तेजसिंह ने यह हुक्म जारी किया कि किशोरी, कामिनी और कमला के खेमे में1 उस समय कोई लौंडी न रहे और न जाने पावे जब वे तीनों निद्रा की अवस्था में हों अर्थात् जब वे तीनों जागती रहें तब तक तो लौंडियां उनके पास रहें और आ-जा सकें परन्तु जब वे तीनों सोने की इच्छा करें तब एक भी लौंडी खेमे में न रहने पावे और जब तक कमला घण्टी बजाकर किसी लौंडी को बुलाने का इशारा न करे तब तक कोई लौंडी खेमे के अन्दर न जाय और उस खेमे के चारों तरफ बड़ी मुस्तैदी के साथ पहरा देने का इन्तजाम रहे।

इस आज्ञा को सुनकर मनोरमा बहुत ही चिटकी और मन में कहने लगी कि 'तेजसिंह भी बड़ा बेवकूफ आदमी है, भला ये सब बात मनोरमा के हौसले को कभी कम कर सकती है बल्कि मनोरमा अपने काम में अब और शीघ्रता करेगी! क्या मनोरमा केवल इसी काम के लिए इस लश्कर में आई है कि किशोरी को मारकर चली जाय नहीं-नहीं, वह इससे भी बढ़कर करने के लिए आई है। अच्छा-अच्छा, तेजसिंह को इस चालाकी का मजा आज ही न चखाया तो कोई बात नहीं! किशोरी, कामिनी और कमला को या इन तीनों में से किसी एक को आज ही न मार खपाया तो मनारेमा नाम नहीं। रह तो जा नालायक, देखें तेरी होशियारी कहां तक काम करती है'! ऐसी-ऐसी बहुत-सी बातें मनोरमा ने सोचीं और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का उद्योग करने लगी।

1. किशोरी, कामिनी और कमला एक खेमे में रहा करती थीं।

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