आत्मा सत्रह दिन तक यात्रा करने के पश्चात अठारहवें दिन यमपुरी पहुंचती है। यमपुरी या यमलोक का उल्लेख गरूड़ पुराण और कठोपनिषद ग्रंथ में विस्तार से मिलता है। मृत्यु के 12 दिनों के बाद मानव की आत्मा यमलोक का सफर प्रारंभ कर देती है। पुराणों अनुसार यमलोक को 'मृत्युलोक' के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन दूरी पर माना गया है। एक योजन में करीब 4 किमी होते हैं।
 गरूड़ पुराण में यमलोक के इस रास्ते में वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है। वैतरणी नदी विष्ठा और रक्त से भरी हुई है। जिसने गाय को दान किया है वह इस वैतरणी नदी को आसानी से पार कर यमलोक पहुंच जाता है अन्यथा इस नदी में वे डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें निकालकर धक्का देते रहते हैं।
 
यमपुरी पहुंचने के बाद आत्मा 'पुष्पोदका' नामक एक और नदी के पास पहुंच जाती है जिसका जल स्वच्छ होता है और जिसमें कमल के फूल खिले रहते हैं। इसी नदी के किनारे छायादार बड़ का एक वृक्ष है, जहां आत्मा थोड़ी देर विश्राम करती है। यहीं पर उसे उसके पुत्रों या परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण का भोजन मिलता है जिससे उसमें पुन: शक्ति का संचार हो जाता है।

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