विश्व इतिहास में सर्वप्रथम मातृ और पितृभक्त के रूप में भगवान गणेश का उल्लेख  मिलता है। एक बार माता की आज्ञा से गणेश द्वार पर शिव को रोक लेते हैं। कुपित होकर शिव उनका सिर धड़ से अलग कर देते हैं। जब पार्वती को पता चलता है तो वे दुख से बेहाल हो जाती हैं और बालक के जन्म की बात बताते हुए अपने पति से उसे पुनः जीवित करने को कहती हैं।
 
तब शिव हाथी के बच्चे का सिर बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर देते हैं और उसे गणेश नाम देते हुए अपने समस्त गणों में अग्रणी घोषित करते हैं। साथ ही वह कहते हैं कि गणेश समस्त देवताओं में प्रथम पूज्य होंगे।
 
एक बार जब सभी देवताओं में धरती की परिक्रमा की प्रतियोगिता होती है तो कार्तिकेय और गणेश भी इस प्रतियोगीता में हिस्सा लेते हैं। कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल पड़े। गणेशजी ने सोचा अपने वाहन चूहे पर बैठकर पृथ्वी परिक्रमा पूरी करने में बहुत समय लग जाएगा। इसलिए गणेश  अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा कर के कार्तिकेय के आने की प्रतीक्षा करने लगे। कार्तिकेय के  लौटने पर उन्होनें  पिता से कहा- गणेश तो पृथ्वी की परिक्रमा करने गया ही नहीं। इस पर गणेश बोले- मैंने तो अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा की है। माता-पिता में ही समस्त तीर्थ है। तब शंकर ने गणेश को आर्शीवाद दिया कि समस्त देवताओं में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।

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