समुद्र मंथन में से सबसे पहले कालकूट विष निकला था , जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया था । इससे तात्पर्य है कि अमृत (परमात्मा) हर इंसान के मन में स्थित है। अगर हमें अमृत चाहिए तो सबसे पहले हमें अपने मन को मथना पड़ेगा । जब हम अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार उसमें से बाहर निकलेंगे। यही बुरे विचार तो विष है। 
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