प्रेमचंद एक संवेदनशील कथाकार ही नहीं, सजग नागरिक व संपादक भी थे। उन्‍होंने 'हंस', 'माधुरी', 'जागरण' आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन करते हुए व तत्‍कालीन अन्‍य सहगामी साहित्यिक पत्रिकाओं 'चांद', 'मर्यादा', 'स्‍वदेश' आदि में अपनी साहित्यिक व सामाजिक चिंताओं को लेखों या निबंधों के माध्‍यम से अभिव्‍यक्‍त किया। अमृतराय द्वारा संपादित 'प्रेमचंद : विविध प्रसंग' (तीन भाग) वास्‍तव में प्रेमचंद के लेखों का ही संकलन है। प्रेमचंद के लेख प्रकाशन संस्‍थान से 'कुछ विचार' शीर्षक से भी छपे हैं। प्रेमचंद के मशहूर लेखों में निम्‍न लेख शुमार होते हैं- साहित्‍य का उद्देश्‍य, पुराना जमाना नया जमाना, स्‍वराज के फायदे, कहानी कला (1,2,3), कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार, हिंदी-उर्दू की एकता, महाजनी सभ्‍यता, उपन्‍यास, जीवन में साहित्‍य का स्‍थान आदि।

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