मेहरगढ़ (भारतीय उपमहाद्वीप का उत्तर पश्चिमी क्षेत्र ) से मिले एतिहासिक सबूतों के मुताबिक भारतीय सभ्यता की शुरुआत ६५०० बी सी के करीब हुई | ये दुनिया भर का उस काल का सबसे पुराना और शहरी स्थान है | इस स्थान से हमें जानवरों को पालतू बनाना , कृषि का विकास और कला और शिल्प से जुड़े सबूत मिले हैं | ६५०० बी सी में सबसे पहले यहाँ घोड़े को पालतू बनाया गया | एक प्रगतिशील प्रक्रिया के तहत मवेशियों को पालतू बनाना , कृषि का विकास , धातू का इस्तेमाल और गाँवों और शहरों  के विकास को अंजाम दिया गया | कुछ इतिहासकारों ने ऐसे सुझाव दिए हैं की १५०० -१००० बी सी में ही भारत पर सबसे पहली बार आर्यनों ने हमला बोला था | लेकिन मोजूदा पुरातत्व जानकारी दक्षिण एशिया में किसी भी इंडो आर्यन या यूरोपीय आक्रमण के होने की बात का समर्थन नहीं करती है | इस परमपरा के लोग बुनियादी तौर पर आज के भारत के जातीय समूह जैसे ही थे और उसी तरह की भाषाएँ बोलते थे |

दो महत्वपूर्ण शहरों की खोज हुई :१९२० में खुदाई के दौरान रवि नदी पर हड़प्पा और सिन्धु नदी पर मोहेंजोदारो | इन दो शहरों के अवशेष एक बड़ी और पूर्ण रूप से विकसित सभ्यता का हिस्सा थे जिसे इतिहासकार ‘सिन्धु घाटी सभ्यता’ या ‘सरस्वती सभ्यता’ भी कहते हैं | बाद में हड़पपन सभ्यता ३१००-१९०० बी सी में विशाल शहर , पेचीदा कृषि और धातूकरण, कला और शिल्प का विकास और माप और बाट में सटीकता का प्रदर्शन करती है | वह विशाल इमारतों का निर्माण करते थे जिन्हें गणितीय तौर पर बनाया जाता था | उस समय के शहरों के निर्माण की प्रक्रिया की तुलना आज के हमारे  बेहतरीन आधुनिक शहरों की इमारतों से की जा सकती है | इस सभ्यता की एक लिखित भाषा थी जो बेहद उत्कृष्ट थी | इनमें से कुछ शहरों का व्यास ३ मील था | इन पुरानी नगरपालिकाओं में अनाज के भंडार ,किले और घर घर में शोचालय थे | मोहेंजदारो में एक मील लम्बी नहर शहर को समुद्र से जोड़ती था और वहां से व्यापार जहाज मेसोपोटामिया तक जाते थे |अपने सबसे ऊँचे स्थान में सिन्धु सभ्यता सिन्धु नदी घाटी के आधा  लाख वर्ग मील तक फ़ैली हुई थी और  एजीप्ट और सुमेर की सभ्यताओं के समय की होने के बावजूद वह उनसे ज्यादा समय तक बनी रही | ये सरस्वती सभ्यता व्यापार के  और दक्षिण और पश्चिम एशिया में सभ्यता के मेल का केंद्र थी |

मेहरगढ़, हड़प्पा, मोहनजोदारो, कालीबंगा और लोथल विशाल सरस्वती सभ्यता के प्रमुख शहर हैं और उसके तट पर ५०० से ज्यादा शहर अभी भी खुदाई का इंतज़ार कर रहे हैं |

 

साल ४५०० बी सी में मान्धात्र ने द्र्य्हुस का हरा उसे पश्चिम में ईरान में खदेड़ दिया | ४०००-३७०० बी सी रिग वेद का समय था | ३७३० बी सी में ’१० राजाओ का युद्ध ‘ हुआ | ये समय था सुदा और उनके ऋषि सलाहकार ,वशिष्ठ और विश्वामित्र का | ३६०० से ३१०० बी सी था वैदिक काल का अंत जिसमें यजुर , समा और अथर्व वेद लिखे गए | ३१०० बी सी व्यास द्वारा रचित महाभारत के लिखे जाने का संभावित समय है | इसी समय धरती के हिलने की वजह से नदी यमुना, जो की सरस्वती नदी की सहायक नदी थी ,का रास्ता बदल गया और सरस्वती छोटी हो गयीं | ये कलि युग की शुरुआत थी | १९०० बी सी में एक और बार धरती के हिलने से सतलज सरस्वती से अलग हो गयी | सरस्वती के सूखने से काफी लोग पूर्व में गंगा घाटी की और चले गए जिससे भारत की और सभ्यताओं ने जनम लिया | हड़प्पन सभ्यता के पश्चात १९०० -१००० बी सी में पारिस्थितिकी और नदी में परिवर्तन की वजह से हड़प्पन शहरों को त्याग दिया गया | विकेन्द्रीकरण और स्थानांतरण होने के बाद भी पुरानी कृषि और कला परमपराएं और कई बड़े शहर जैसे द्वारका चलते रहे | ये बाद में पहली सहस्राब्दी की गंगा सभ्यता में विकसित हो गयी जो की पुराने भारत की शास्त्रीय सभ्यता थी , और जिसने वेदों के माध्यम से अपने सरस्वती क्षेत्र के मूल की याद को बनाये रखा | 

डेविड फ्राव्ले और अन्य आधुनिक विद्वानों का प्रस्ताव:

1. 6500-3100 बी सी , पूर्व हड़प्पा, शुरुआती रिग वैदिक

2. 3100-1900 बी सी , परिपक्व हड़प्पा 3100-1900, चार वेदों का समय |

3. 1900-1000 बी सी  हड़प्पा का अंत ,  वैदिक और  ब्राह्मण काल का अंत |

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