प्रिय ज़हीर

में पिछले कई महीनों से आपके  वफादार पाठकों में से एक रहा हूँ | सबसे पहले मुझसे अपनी  शुद्ध लिखाई की  तारीफ़ कबूल करें , जो आपके गुजरात की यात्रा के अनुभवों की कथाओं से और रोचक बन जाती है |उससे भी ज़रूरी बात ये है की हांलाकि मुझे आपके लेख जानवर्धक लगते हैं मैं आपके कई नज़रियों से सहमत नहीं हूँ | आपको मुझे आपके और अपने वैचारिक मतभेद को सुलझाने के लिए आपसे एक खुली वार्ता करने की इजाज़त देनी चाहिए |

गुजरात के बारे में मुझे अपनी एक महीना लम्बी यात्रा के दौरान पता चला था | इस यात्रा का मुख्य आकर्षण था उन बुद्धिजीवी गुजरातियों के साथ मेरी दिलचस्प बातचीत जिनसे मेरी किसी शैक्षिक सम्मलेन में सामान्य रूप से मुलाकात नहीं हो सकती थी  | ९ दिसम्बर २०१२ की सुबह में फ़िलेडैल्फ़िया से अहमदाबाद पहुंची  और नल सरोवर पक्षी अभयारण्य देखने गयी  | पक्षियों के दर्शन के बीच में मैने नाविक से बातचीत कर अपना मन बहलाया | उसने बताया की झील तक सीधे पहुँचने की पाबंदी की वजह से धंदे में गिरावट आ गयी है | मैने उसका मन न ख़राब हो जाये इस वजह से उसे इस कदम के पीछे छुपे पर्यावरण मुद्दे के बारे में अपनी राय नहीं दी |

उसके बाद उसके भाई ने मुझे अपनी मोटरसाइकिल पर एक और पर्यटक स्थल तक पहुँचाया | पहले अजनबी के साथ अपनी वार्ता की सफलता के बाद मेने अपने चालक से एक राजनीतिक बातचीत शुरू की | मेने उससे पूछा की आने वाले चुनावों में कौन जीतेगा –वह कोई अनुमान तो दे सकता है | मेने बेशर्मी से उससे ये भी पूछ लिया की वह किसके हक में मत डालेगा | झट जवाब आया ,"कान्ग्रेस"(कांग्रेस) | उसने आगे बताया की उसके गाँवों में राजनितिक विकल्प बंटे हुए हैं जिनमे कुछ भाजपा का समर्थन कर रहे हैं | मेने उनसे उनका धर्म नहीं पूछा पर उनके नामों से पता चल रहा था की वह मुसलमान थे | जिस बात को में आपके सामने रखना चाह रहा हूँ ज़हीर वह ये है की वह अपनी शिकायतों और राजनितिक विकल्पों को एक अजनबी से बांटने को तैयार हैं , हांलाकि उनकी पसंद मोजूदा सरकार से अलग है  जो शायद फिर सत्ता में आ जाएगी |

मैं आपको और ऐसी कहानियां सुना सकती हूँ , मसलन वडोदरा का वह ऑटो रिक्शा चालक , जो की धर्म से मुस्लमान था जिसने हिम्मत कर चुनाव के नतीजे का अनुमान भाजपा के हक में किया था | पर में जल्दी से चुनाव के बाद के गुजरात की अपनी गीर सफारी के बारे में आपको बताता हूँ | आपको तो पता है की निवास स्थान की कमियों की वजह से गीर में एशियाई शेर की बढ़त में रूकावट आ सकती है |आस पास के कुछ प्रदेशों जैसे मध्य प्रदेश ने कुछ एशियाई शेरों को पनाह देने का प्रस्ताव रखा है | गुजरात सरकार इस प्रस्ताव के लिए तैयार नहीं है | मेने अपने  सफारी के गाइड और चालक से गीर के शाही निवासियों  के  स्थानांतरण के बारे में उनका नजरिया पूछा |

मेरे गाइड ने इस सम्भावना को खारिज करते हुए कहा की "शेर भी नहीं देंगे , उनके बाल भी नहीं देंगे" | चालक ने तब भी थोडा सोच समझकर जवाब दिया लेकिन वह भी अपने साथी से सहमत था | संयोग से  ज़हीर गाइड मुसलमान था और चालक हिन्दू | में अपनी राय देने से कतराऊंगी  नहीं जो मेने इस बातचीत से स्थापित की है , की मेरा गाइड एक आत्मविश्वासी मुसलमान था , जो अपने हिन्दू भाई की तरह अपने राज्य के आर्थिक विकास में बराबर शरीक था | अब तक आप सोच रहे होंगे की क्या मेने अपनी यात्रा में सिर्फ मुसलमानों से बात की – नहीं ऐसा नहीं है – में सिर्फ उनसे अपनी बातचीत को दर्शा रही  हूँ क्यूंकि उनकी सोच आपके आवलोकन से बिलकुल विपरीत है |

इस सन्दर्भ में ज़हीर आपने गुजरात सरकार की धार्मिक अल्पसंख्यकों के छात्रों को छात्रवृत्ति न देने के मुद्दे पर अपना विरोध ज़ाहिर किया था | मैं ऐसा सोचटी  हूँ की धर्म  चयनात्मक आर्थिक सशक्तिकरण का आधार कैसे हो सकता है –क्या मोजूदा आर्थिक  स्थिति काफी नहीं है ? क्या ऐसे चयनात्मक फायदे  भेदभावपूर्ण  नहीं समझे जायेंगे और समाज में धार्मिक खाई को बढ़ाएंगे नहीं ? माना भारत ने स्वतंत्रता अर्जित करने के बाद से जाती के बल पर आर्थिक संरक्षण मुहैय्या कराया है ; ये अभी भी विवादास्पद है की इससे निर्धारित जनता सशक्त हुई की नहीं | इसमें कोई शक नहीं है की एक नागरिक (हिन्दू पढें) अपनी जाती नहीं बदल सकता , पर वह एक नया धर्म अपना सकता है | तब क्या आपको मंज़ूर होगा की चयनात्मक आर्थिक फायदों की वजह से लोग धर्म परिवर्तन कर लें ?

अब में अपनी वास्तविक यात्रा की बात करूंगी  | अहमदाबाद  से शुरू हुए इस सफ़र में मेने और मेरी माँ ने सबसे पहले उत्तरी जिले के दर्शन किये जिसमें शामिल था मोढेरा का सुन्दर सूर्य मंदिर , पतन में रानी की भाव की अनोखी चित्रकारी , वडनगर के बोद्ध खँडहर और अम्बाजी के दर्शन | उत्तरी इलाकों के बाद हमने एक दिन में वरोड़ा का सफ़र तय किया , लोथल के सिन्धु घाटी  के खँडहर देखे , और कुछ दिन  वेल्वादर में स्थित काला हिरन राष्ट्रिय पार्क में बिताये , जहाँ जंगल होने के बावजूद काले हिरन के दर्शन करने का अनूठा मौका मिलता है | इसके पश्चात हम पलितना की जैन तीर्थयात्रा पर निकल पड़े और  करीबन ३००० सीडियां चढ़ कर हम उत्कृष्ट नक्काशीदार वाले शत्रुंजय  मंदिरों तक पहुंचे | इसके पश्चात हम अवकाश ले दिउ चले गए और बाद में सोमनाथ की तीर्थयात्रा के लिए गुजरात लौटे |

इसके बाद हमने एक और तीर्थ यात्रा में भाग लिया जो की एशियाई शेरों के घर , गीर पर ख़तम हुई जिसके बारे में मेने पहले लिखा है | हमने साथ साथ भक्ति और प्रकृति दोनों का समागम देखा जब हम द्वारका गए और उसके बाद जामनगर के अनूठे मरीन नेशनल पार्क जहाँ हम पानी में कम ज्वार के समय तैर कर  एक आकर्षक समुद्री पशु सफारी का हिस्सा बने , जो की आज भी मेरी यादों में ताज़ा है | सफ़र में पड़े राजमार्ग अभी तक मेने जितने भी देखे हैं उनमें सर्वश्रेष्ठ हैं और सारे इलाके में पवन चक्कियों का फैलाव देख मुझे सरकार का वैकल्पिक ऊर्जा पर केन्द्रित रूचि का ध्यान आया | अंत में हम अतुलनीय कच्छ पहुंचे , जो २००१ के भूकंप में नष्ट हो गया था लेकिन अब एक उभरता हुआ उद्योगिक केंद्र है | कच्छ एक पर्यटक की नज़र से भी बेहद खूबसूरत है क्यूंकि यहाँ आपको मिलेंगे सफ़ेद रण में रणओत्सव, धोलावीरा में शानदार सिंधु घाटी खंडहर, और छोटे रण में जंगली गधा अभयारण्य | शानदार स्थानीय सड़क नेटवर्क, की वजह से ही भुज के आसपास स्थित मुस्लमान कारीगरों के गाँवों से उत्तम ब्लॉक मुद्रित शॉलें हासिल करना इतना आसान हो गया |

सार्वजनिक और निजी परिवहन के इस  संयोजन ने हमें हमारी यात्रा को सफलतापूर्वक ख़तम करने में मदद किया | हमने अपने होटल या तो इटरनेट के माध्यम से या फिर मददगार ऑटो रिक्शा चालकों के माध्यम से ढूंढे और बिना किसी ट्रेवल एजेंसी की मदद से आगे की यात्रा और स्थानीय पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया | कई बार हमें अजीब समय पर बहार जाना पड़ा , जैसे कई बार में रात के 12 बजे के बाद भी सड़कों पर होती थी  कभी मर्ज़ी से और कई बार मजबूरी की वजह से  | फिर भी हमने हमेशा  अपने को सुरक्षित महसूस किया |

मेरे इस आत्मविश्वास ने मुझे उन लोगों की बात न मानने की हिम्मत दी जो मुझे लग रहा था की मुझे ठगना चाहते हैं | और कई बार मेरे जैसी अजनबी , जो की बिना आदमी के चलने वाली औरत है इन विवादों में बिना स्थानीय भाषा की भरपूर जानकारी के जीत जाती थे  |मेरी माँ ने मुझे सलाह दी की में ऐसी लापरवाही अपने शहर हाउराह , जो की कोलकत्ता के प्रगतिशील इलाकों में से है ,में नहीं आजमा सकती हूँ | में इसलिए ये पढ़ कर हैरान थी की आप जिन औरतों को जानते हैं वह औरतें गुजरात में सुरक्षित नहीं महसूस करती हैं | क्या मेरा अनुभव एक आकस्मिक संयोग था , एक कभी कभार होने वाला किस्सा ? अपने साथी यात्रियों , छात्राओं , किशोरे लड़कियों की माओं से हुई मेरी बातचीत से लगता है नहीं | निष्कर्षक तौर पर इंडिया टुडे , ऐ बी पी समाचार और आई बी एन ७ जैसे मीडिया दल जो की मोजूदा सरकार के समर्थक नहीं है उन्होनें भी नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखने के लिए गुजरात को पुरस्कृत किया है  |

मैं आपके लेख पढ़  कर बहुत निराश हुआ की गुजरात में आवास भेदभाव प्रचलित है| क्यूंकि मेने सिर्फ एक महीन बिताया था वो भी एक पर्यटक की तरह मेरे को इस समस्या की गहरायी का अंदाज़ा नहीं हो सकता | पर में आपको अपने राज्य के बारे में ज़रूर कुछ हकीकतों से वाकिफ करा सकती हूँ | पश्चिम बंगाल को ३ दशक के वाम राज्य के बाद लोगों की नज़र में सामाजिक रूप से प्रगतिशील मूल्यों का मालिक माना जाता है |

लेकिन यहाँ भी मैं आपको आश्वासन दे सकती हूँ की अगर मुसलमान परिवार  उपनगरीय मध्यम वर्ग के परिवार के घरोंमें किराये पर रहने का प्रयत्न करेंगे तो उनके साथ भेदबाव किया जाएगा | इसी तरह से कई ऐसे मुसलमान इलाके हैं जहाँ हिन्दुओं को रहने का स्थान नहीं मिलेगा | दक्षिण में हमने हिन्दू अख़बार के एक लेख (११ अप्रैल २०१३ ) से जाना की तमिल नाडू के पेराम्बलुर जिले के  वी कलाथुर  गाँव में हिन्दू और मुसलमान अलग अलग रहते हैं ; इससे भी बुरा ये है की मुसलमान हिन्दू धार्मिक जुलूसों के सड़कों के  निकलने पर आपत्ति उठाते हैं | यहाँ ध्यान इस बात पर दें की आवास भेदभाव सिर्फ धर्म पर निर्भर नहीं है पर कई और कारक भी है जैसे : अकेली औरतें और कई बार अकेले आदमियों को भी अपने पसंद का मकान किराये पर मिलने में तकलीफ होगी |

आवास भेदबाव, अलग बस्ती का निर्माण और अटकलें लगाना पूरे भारत में फैली एक दुखदायी प्रथा है , पर क्या ये सिर्फ भारत में प्रचलित है ?

ये ध्यान देने वाली बात है की अमेरिका के कई राज्यों में लिंग पहचान, वैवाहिक स्थिति, यौन अभिविन्यास के आधार पर आवास भेदभाव आज भी कानूनन माना जाता है | मुझे यकीन है की आप अमेरिका में स्थित  चाइना टाउन स में गए होंगे और फ़िलेडैल्फ़िया के चाइना टाउन में स्थित घरों में बिना चाइना की मूल के लोगों का स्वागत नहीं किया जाता है |

पूरे अमेरिका में कई ऐसे इलाके हैं जो की मुख्यतर भारतीय, बांग्लादेशी, अफ्रीकी मूल के अमेरिकी लोगों के निवास स्थान हैं ; इस अनुचित घटना के बारे में ज्यादा बात न करते हुए में सिर्फ ये कहूंगी की भेदभाव दुनिया भर में प्रचलित है | लेकिन इस सामाजिक बुराई का दुनिया भर में पाया जाना उसे सही नहीं बना देता मसलन मेने जान भूजकर  फ़िलेडैल्फ़िया का एक महानगरीय बहु जातीय इलाका घर के लिए चुना है ताकि मुझे तन्हाई का सामना न करना पड़े  | इसीलिए इस बुराई को किसी एक राज्य या किसी एक सरकार की नीतियों का नतीजा बताना बेवजह है | मेरी जानकारी के मुताबिक गुजरात में श्रीमान मोदी या उनके दल के कार्यकाल सँभालने से पहले भी ये भेदभाव मोजूद था |

मेने ये भी देखा की आपने सरकार को  स्त्री जाती से द्वेष का समर्थक भी बताया है | आपने इस बात का ज़िक्र किया की मोदी अपने आपको  स्त्री जाती से द्वेष की प्रथाओं से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं जिसका मतलब है वह पहले इससे सम्बंधित थे | मैंने एक सोशल मीडिया के ज़रिये से जहाँ से मै आपके संपर्क में आई थी ,से जाना की आपका ये वक्तव्य गुजरात सरकार के २००२ में वहां हुए दंगे के दौरान हुए बलात्कारों को रोकने की असफलता से प्रेरित  है  |

बलात्कार उन सबसे वहशी गुनाहों में से एक है जो एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के साथ कर सकता है , पर क्या एक दुखदायी घटना के दौरान हुए इस हादसे को रोक पाने की असफलता को हम स्त्री द्वेष  का समर्थन मान सकते हैं ?

इस सोच से इस दुनिया की कई सरकारों को इस सामाजिक बुराई का दोषी माना जाना चाहिए |मसलन हाल ही में दिसम्बर २०१२ में अमेरिकी सेना पर अफगानिस्तान में बलात्कार का इलज़ाम लगा था , जिससे ओबामा पर भी  स्त्री द्वेष  का इलज़ाम लगना चाहिए ,ख़ास तौर से इसलिए क्यूंकि वह सेना के अध्यक्ष हैं जबकि दंगाई तो मोदी जी के शिष्य नहीं थे | मेरी ऐसी उम्मीद थी की आप जैसी प्रतिष्ठा वाला  लेखक इस इलज़ाम को थोडा कम तीव्रता से लगायगा | फिर भी मेने आप की इस ग़लतफ़हमी की सच्चाई को जानने के लिए सरकारी नीतियों का अध्ययन किया| मुझे जो पता चला वह में नीचे लिख रही हूँ |

भारत में लिंग संवेदनशीलता के कई उदाहरण मिले हैं :एक तरफ तो ये ऐसा देश है जिसका सबसे पहले एक औरत ने नेतृत्व किया था | दूसरी तरफ १९८७ में इसी देश में एक १८ साल की दुल्हन रूप कँवर को अपने पति के साथ जला दिया गया , और उसके ऊपर जिन लोगों ने इस गुनाह को अंजाम दिया उन्हें अदालत ने बरी कर दिया |

युवा, प्रगतिशील और पश्चिमी शिक्षित प्रधानमंत्री राजीव गांधी, जब ये गुनाह हुआ तब इस क्षेत्र में नए थे लेकिन उन्होंने भी ६२ साल की शाह  बानो को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश  के तहत अपने पति से मिलने वाली रखरखाव के फैसले को ख़ारिज करा दिया | इस प्रतिवाद को मुस्लिम वीमेन एक्ट १९८६ के माध्यम से , राजीव गाँधी की सरकार जिसे  उस वक़्त संसद में पूर्ण बहुमत हासिल था  ने अंजाम दिया| जहाँ एक तरफ कई सशक्त औरतों ने २१स्वी सदी में उद्यमियों, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और डॉक्टरों की तरह सफलता पाई , दूसरी तरफ अभी भी कई अजन्मी मादा भ्रूणों को मौत के घाट उतार दिया जाता है जिससे देश भर में चौंकाने वाला लिंग असंतुलन पैदा हो गया है |

इसीलिए एक ऐसा व्यापक एजेंडा जो ध्यान रखे  (1) महिलाओं की सामाजिक और शारीरिक रखरखाव (२) उनका आर्थिक सशक्तिकरण और (३) निर्णय लेने की प्रक्रिया में बराबर की भागीदारी  के लागू किये जाने की ज़रुरत है |

इसके इलावा औरतों के सशक्तिकरण की कोशिशों का केंद्र बिंदु आर्थिक रूप से वंचित औरतों पर होना चाहिए क्यूंकि उसकी  भाग्यशाली बहनों  के पास कम से कम ज़रुरत पढने पर लिंग भेदभाव से लड़ कर जीतने के हथियार तो मोजूद हैं | ये देख कर थोड़ी हिम्मत बड़ी की गुजरात में सशक्तिकरण के अभियान  को इसी इरादे से बनाया गया है  |

पर में शायद आपकी मेहमाननवाज़ी का ज्यादा फायदा उठा चुकी हूँ , मैं अब आपको सिर्फ गुजरात सरकार की कुछ ऐसी नीतियों के बारे में बताउंगी जो इन लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं | बेटी बचाओ अभियान ने १९९१ से २००१ में घटते बच्चों के लिंग अनुपात को रोक लिया है ( 1000 आदमियों के अनुपात में ९२८ औरतें से घटकर ८८३  ) और २०११ तक इसको बढ़ा कर ८८६ कर दिया है |

आसार सकरात्मक हैं लेकिन लिंग संतुलन की वापसी एक मिली जुली कोशिश होनी चाहिए | मोदी ने अपने कई बहु चर्चित सभाओं ( २०१२ अगस्त में गूगल हेंगआउट वार्ता , फिक्की की महिला शाखा से बातचीत) में जनता का ध्यान गुजरात और पूरे देश में फैली इस  सामाजिक बुराई की तरफ आकर्षित किया है | गुजरात सरकार ने कन्या केलवानी अभियान की शुरुआत की है लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए और अब इस को १० साल हो गए है | मुझे मालूम पढ़ा है की लड़कियों की शिक्षा दर १३ प्रतिशत से बढ़ गयी है और स्कूल छोड़ने वालों लड़कियों की दर २९.७७ प्रतिशत से घट २ प्रतिशत पर आ गयी है ( २००१ और २०११ के सेन्सस के मुताबिक ) | मुख्य मंत्री हर साल खुद को मिले तोहफों की नीलामी कर  उस पैसे को इस अभियान के लिए समर्पित कर देते हैं ; फेब्रुअरी २०१२ में आयोजित ऐसी ही नीलामी से २.०४ करोड़ रूपये अर्जित हुए थे |

चिरंजीवी योजना जिसने शिशु मृत्यु दर को काफी हद तक कम कर दिया है को सिंगापुर आर्थिक विकास बोर्ड और वाल स्ट्रीट जर्नल के द्वारा  एशियाई इनोवेशन अवार्ड से सम्मानित किया गया है | मिशन बालम सुखम अभियान के लिए हर साल १०९४ करोड़ रूपये आवंटित किये गए हैं और वह गर्भवती महिलाओं, माताओं और महिला बच्चों सहित 44 लाख लाभार्थियों की खाद्य ज़रुरत को पूरा कर कुपोषण को तगड़ा जवाब देता है | एकीकृत बाल विकास योजना पर सीएजी  की रिपोर्ट से सामने आया है की गुजरात ने कुपोषित बच्चों का प्रतिशत २००७ से २०११ में ७०.६९ से क घटा कर ३८.७७ कर दिया है |

आर्थिक सशक्तिकरण की बात करें तो सखी मंडल अभियान  पिछड़े वर्ग की ग्रामीण औरतों की धन की ज़रुरत  के लिए सूक्ष्म वित्त मंच का काम करता है | अकेली औरतों खास तौर पर विधवाओं में कौशल विकास और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है | संपत्ति के स्वामित्व को प्रोत्साहित करने के लिए, संपत्ति पंजीकरण शुल्क महिलाओं के लिए माफ कर दिया गया है | गुजरात स्थानीय एकाईयों  में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण प्रदान करने के लिए प्रयास कर रहा है।

चुनावी भागीदारी बढ़ाने के लिए एक चुनावी सभा में मुख्य मंत्री ने सार्वजानिक तौर पर औरतों से भारी  संख्या में मत देने की गुज़ारिश की थी ( औरतों का  मत प्रतिशत पारंपरिक रूप से काफी कम रहा है ) | ये और निर्वाचन आयोग की भरपूर कोशिशों के फलस्वरूप २००७ से २०१२ में गुजरात में महिला मतदाताओं का प्रतिशत ५७ से बढ़कर ६८.९ हो गया | इसमें कोई आश्चर्य नहीं है की मोदी की मीडिया में खिलाफत करने वाले लोग जैसे आकार  पटेल , महेश लंगा और राजदीप सरदेसाई ने भी माना है की मोदी को गुजरात की औरतों से एक तगड़ा समर्थन प्राप्त है | उनको गुजरात में औरतों के सशक्तिकरण में किये गए योगदान के लिए कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के भारतीय परिसंघ(फिक्की)  के उद्योग लॉबी की 'महिलाओं विंग की वार्षिक आम सभा की बैठक को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया है ।

मैं इस लम्बे आत्मभाषण का अंत इस उम्मीद में कर रही  हूँ की हम इस बातचीत को आगे बढ़ाएंगे और एक दुसरे के अलग-अलग दृष्टिकोण से सहमत न भी हों उससे कुछ सीखेंगे  ज़रूर | आप जब भी फ़िलेडैल्फ़िया आयें तो मैं आपसे वहां मिल कर बातचीत करने का इंतज़ार करूंगी  |

शुभकामनाएं
सास्वती सरकार

Source: http://blogs.swarajyamag.com/2013/04/13/to-zahir-janmohamed-2
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