रचनाएँ और उनका महत्व

सादी के रचित ग्रंथों की संख्‍या पंद्रह से अधिक हैं । इनमें चार ग्रंथ केवल गज़लों के हैं । एक दो ग्रंथों मेंक़सीदे दर्ज हैं जो उन्होंने समय-समय पर बादशाहों या वज़ीरों की प्रशंसा में लिखे थे। इनमें एक अरबी भाषा में है। दो ग्रंथ भक्तिमार्ग पर हैं। उनकी समस्त रचना में मौलिकता और ओज विद्यमान है, कितने ही बड़े-बड़े कवियों ने उन्हें गज़लों का बादशाह माना है। लेकिन सादी की ख्याति और कीर्ति विशेषकर उनकी गुलिस्तां और बोस्तां पर निर्भर है। सादी ने सदाचार का उपदेश करने के लिए जन्म लिया था और उनके कसीदों और गज़लों में भी यही गुण प्रधान है। उन्होंने कसीदों में भाटपना नहीं किया है, झूठी तारीफों के पुल नहीं बांधे हैं। गज़लों में भी हिज्र और विशाल, जुल्‍फ़ और कमर के दुखड़े नहीं रोये हैं। कहीं भी सदाचार को नहीं छोड़ा। गुलिस्तां और बोस्तां का तो कहना ही क्या है? इनकी तो रचना ही उपदेश के निमित्त हुई थी। इन दोनों ग्रंथों को फ़ारसी साहित्य का सूर्य और चंद्र कहें तो अत्युक्ति न होगी। उपदेश का विषय बहुत शुष्क समझा जाता है, और उपदेशक सदा से अपनी कड़वी, और नीरस बातों के लिये बदनाम रहते आये हैं। नसीहत किसी को अच्छी नहीं लगती। इसीलिए विद्वानों ने इस कड़वी औषधि को भांति-भांति के मीठे शर्बतों के साथ पिलाने की चेष्टा की है। कोई चील-कौवे की कहानियाँ गढ़ता है, कोई कल्पित कथायें नमक-मिर्च लगाकर बखानता है। लेकिन सादी ने इस दुस्तर कार्य को ऐसी विलक्षण कुशलता और बुध्दिमत्‍त से पूरा किया है कि उनका उपदेश काव्य से भी अधिक सरस और सुबोध हो गया है। ऐसा चतुर उपदेशक कदाचित ही किसी दूसरे देश में उत्पन्न हुआ हो।

सादी का सर्वोत्तमगुण वह वाक्य निपुणता है, जो स्वाभाविक होती है और उद्योग से प्राप्त नहीं हो सकती। वह जिस बात को लेते हैं उसे ऐसे उत्कृष्ट और भावपूर्ण शब्दों में वर्णन करते हैं, जो अन्य किसी के ध्‍यान में भी नहीं आ सकती। उनमें कटाक्ष करने की शक्ति के साथ-साथ ऐसी मार्मिकता होती है कि पढ़ने वाले मुग्ध हो जाते हैं। उदाहरण की भांति इस बात को कि पेट पापी है, इसके कारण मनुष्य को बड़ी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं, वह इस प्रकार वर्णन करते हैं

अगर जौरे शिकम न बूदे, हेच मुर्ग़ दर

दाम न उफतादे, बल्कि सैयाद खुद

दाम न निहारे।

भाव - यदि पेट की चिंता न होती तो कोई चिड़िया जाल में न फंसती, बल्कि कोई बहेलिया जाल ही न बिछाता।

इसी तरह इस बात को कि न्यायाधीश भी रिश्‍वत से वश में हो जाते हैं, वह यों बयान करते हैं

हमा कसरा दन्दां बतुर्शी कुन्द गरदद,

मगर काजियां रा बशीरीनी।

भाव - अन्य मनुष्यों के दांत खटाई से गट्ठल हो जाते हैं लेकिन न्यायकारियों के मिठाई से।

उनको यह लिखना था कि भीख मांगना जो एक निंद्य कर्म है उसका अपराध केवल फ़कीरों पर ही नहीं बल्कि अमीरों पर भी है, इसको वह इस तरह लिखते हैं

अगर शुमा रा इन्साफ़ बूदे व मारा कनावत,

रस्मे सवाल अज़ जहान बरख़ास्ते।

भाव - यदि तुममें न्याय होता और हममें संतोष, तो संसार में मांगने की प्रथा ही उठ जाती।

इनके प्रधान ग्रंथ गुलिस्तां और बोस्तां का दूसरा गुण उनकी सरलता है। यद्यपि इनमें एक वाक्य भी नीरस नहीं है, किन्तु भाषा ऐसी मधुर और सरल है कि उस पर आश्‍चर्य होता है। साधारण लेखक जब सजीली भाषा लिखने की चेष्टा करता है तो उसमें कृत्रिमता आ जाती है लेकिन सादी ने सादगी और सजावट का ऐसा मिश्रण कर दिया है कि आज तक किसी अन्य लेखक को उस शैली के अनुकरण करने का साहस न हुआ, और जिन्होंने साहस किया, उन्हें मुंह की खानी पड़ी। जिस समय गुलिस्तां की रचना हुई उस समय फ़ारसी भाषा अपनी बाल्यावस्था में थी। पद्य का तो प्रचार हो गया था लेकिन गद्य का प्रचार केवल बातचीत, हाट-बाज़ार में था। इसलिए सादी को अपना मार्ग आप बनाना था। वह फ़ारसी गद्य के जन्मदाता थे। यह उनकी अद्भुत प्रतिभा है कि आज छ: सौ वर्ष के उपरांत भी उनकी भाषा सर्वोत्‍तम समझी जाती है। उनके पीछे कितनी ही पुस्तकें गद्य में लिखी गयीं, लेकिन उनकी भाषा को पुरानी होने का कलंक लग गया। गुलिस्तां जिसकी रचना आदि में हुई थी आज भी फ़ारसी भाषा का शृंगार समझी जाती है। उसकी भाषा पर समय का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा।

साहित्य संसार और कवि वर्ग में ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि एक ही विषय पर गद्य और पद्य के दो ग्रथों में गद्य रचना अधिक श्रेष्ठ हो। किन्तु सादी ने यही कर दिखाया है। गुलिस्तां और बोस्तां दोनों में नीति का विषय लिया गया है। लेकिन जो आदर और प्रचार गुलिस्तां का है वह बोस्तां का नहीं। बोस्तां के जोड़ की कई किताबें फ़ारसी भाषा में वर्तमान हैं। मसनवी (भक्ति के विषय में मौलाना जलालुद्दीन का महाकाव्य), सिकन्दरनामा (सिकन्दर बादशाह के चरित्र पर निज़ामी का काव्य) और शाहनामा (फिरदोसी का अपूर्व काव्य, ईरान देश के बादशाहों के विषय में, फ़ारसी का महाभारत) यह तीनों ग्रंथ उच्चकोटि के हैं और उनमें यद्यपि शब्द योजना, काव्यसौदर्य, अलंकार और वर्णन शक्ति बोस्तां से अधिक है तथापि उसकी सरलता, और उसकी गुप्त चुटकियॉं और युक्तियॉं उनमें नहीं है। लेकिन गुलिस्तां के जोड़ का कोई ग्रंथ फ़ारसी भाषा में है ही नहीं। उसका विषय नया नहीं है। उसके बाद से नीति पर फ़ारसी में सैकड़ों ही किताबें लिखी जा चुकी हैं। उसमें जो कुछ चमत्कार है वह सादी के भाषा लालित्य और वाक्य चातुरी का है। उसमें बहुत-सी कथायें और घटनायें स्वयं लेखक ने अनुभव की हैं, इसलिए उनमें ऐसी सजीवता और प्रभावोत्पादकता का संचार हो गया है जो केवल अनुभव से ही हो सकता है। सादी पहले एक बहुत साधारण कथा छेड़ते हैं लेकिन अंत में एक ऐसी चुटीली और मर्मभेदी बात कह देते हैं कि जिससे सारी कथा अलंकृत हो जाती है। यूरोप के समालोचकों ने सादी की तुलना 'होरेस' (यूनान का सर्वश्रेष्ठ कवि) से की है। अंग्रेज़ विद्वान ने उन्हें एशिया के शेक्सपियर की पदवी दी है इससे विदित होता है कि यूरोप में भी सादी का कितना आदर है। गुलिस्तां के लैटिन, फ्रेंच, जर्मन, डच, अंग्रेजी, तुर्की आदि भाषाओं में एक नहीं कई अनुवाद हैं। भारतीय भाषाओं में उर्दू, गुजराती, बंगला में उसका अनुवाद हो चुका है। हिंदी भाषा में भी महाशय मेहरचन्द दास का किया हुआ गुलिस्तां का गद्य-पद्यमय अनुवाद 1888 में प्रकाशित हो चुका है। संसार में ऐसे थोड़े ही ग्रंथ हैं जिनका इतना आदर हुआ हो।

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel