किसी समय वर्षा के मौसम में वर्षा न होने से प्यास के मारे हाथियों का झुंड अपने स्वामी से कहने लगा -- हे स्वामी, हमारे जीने के लिए अब कौन- सा उपाय है ? छोटे- छोटे जंतुओं को नहाने के लिए भी स्थान नहीं है और हम तो स्नान के लिए स्थान न होने से मरने के समान है। क्या करें ? कहाँ जाएँ ? हाथियों के राजा ने समीप ही जो एक निर्मल सरोवर था, वहाँ जा कर दिखा दिया। फिर कुछ दिन बाद उस सरोवर के तीर पर रहने वाले छोटे- छोटे शशक हाथियों के पैरों की रेलपेल में खुँद गये। बाद में शिलीमुख नामक शशक सोचने लगा -- प्यास के मारे यह हाथियों का झुंड, यहाँ नित्य आएगा। इसलिए हमारा कुल तो नष्ट हो जाएगा। फिर विजय नामक एक बूढ़े शशक ने कहा -- खेद मत करो। मैं इसका उपाय कर्रूँगा। फिर वह प्रतिज्ञा करके चला गया, और चलते- चलते इसने सोचा -- कैसे हाथियों के झुंड के पास खड़े हो कर बातचीत करनी चाहिए।

अर्थात हाथी स्पर्श से ही, साँप सूँघने से ही, राजा रक्षा करता हुआ भी और दुर्जन हँसता हुआ भी मार डालता है।

इसलिए मैं पहाड़ की चोटी पर बैठ कर झुंड के स्वामी से अच्छी प्रकार से बोलूँ। ऐसा करने पर झुंड का स्वामी बोला -- तू कौन है ? कहाँ से आया है ? वह बोला -- मैं शशक हूँ। भगवान चंद्रमा ने आपके पास भेजा है। झुंड के स्वामी ने कहा -- क्या काम है बोल ? विजय बोला :-

अर्थात, मारने के लिए शस्र उठाने पर भी दूत अनुचित नहीं करता है, क्योंकि सब काल में नहीं मारे जाने से (मृत्यु की भीति न होने से) वह निश्चय करके सच्ची ही बात बोलने वाला होता है।

इसलिए मैं उनकी आज्ञा से कहता हूँ, सुनिये -- जो ये चंद्रमा के सरोवर के रखवाले शशकों को निकाल दिया है, वह अनुचित किया। वे शशक हमारे बहुत दिन से रक्षित हैं,

इसलिये मेरा नाम ""शशांक प्रसिद्ध है। दूत के ऐसा कहते ही हाथियों का स्वामी भय से यह बोला -- सोच लो, यह बात अनजानपन की है। फिर नहीं करुँगा।

दूत ने कहा -- जो ऐसा है तो उसे सरोवर में क्रोध से काँपते हुए भगवान चंद्रमाजी को प्रणाम कर और प्रसन्न करके चला जा। फिर रात को झुंड के स्वामी को ले जा कर ओर जल में हिलते हुए चंद्रमा के गोले को दिखला कर झुंड के स्वामी से प्रणाम कराया और इसने कहा -- हे महाराज, भूल से इसने अपराध किया है, इसलिए क्षमा कीजिये, फिर दूसरी बार नहीं करेगा। यह कह कर विदा लिया।

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel