एक जगह था मैं खड़ा और एक जगह था सन्नाटा
हम दोनों ही एक दूसरे को निहारते हुए खड़े थे
मेरे मन की बातें मैं उसके अंदर जाकर कह रहा था
मेरी बातों के बीच वह भी अपनी छाप छोड़ रहा था
उससे बतलाते वक्त मुझे एक सुकून सा मिल रहा था
वह न जाने क्यों मेरा श्रोता सा बन रहा था
मैं जितनी भी बातें उससे कह रहा था, वह जायज थी उसके लिए
ना थे उसके कोई सवाल और ना थे जवाब मेरी उन बातों के लिए
अब जो बातें खत्म हुई मैं वापस अपनी दुनिया लौट आया
वो वही खड़ा रहा मुझे निहारता, मानो मौनी ऋषि सा बन गया ।
                                                                                -KC

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