जोधपुर के संस्थापक जोधाजी के पुत्र दूदाजी ने मेड़ता बसाया। इनके चार पुत्र हुए- वीरमदेव, विक्रमदेव, डूंगरसिंह और रतनसिंह।

डूंगरसिंह के पुत्र खेमराज थे जो अचलसिंह के नाम से प्रसिद्ध हुए कारण कि इन्होने अपने जीवन काल में जितने भी युद्ध लड़े, कभी पीठ की नहीं खाई। सदा ही अचल रहे। इसी अचल निष्ठा के कारण इनका नाम अचलसिंह पड़ा। कल्लाजी इन्हीं अचलसिंह के पुत्र थे।

यह वंशावली इस प्रकार है-

  1. जोधाजी के पुत्र दूदाजी|
  2. दूदाजी के पुत्र विक्रमदेव, रतनसिंह, वीरमदेव, डूंगरसिंह|
  3. विक्रमदेव के पुत्र जयमल|
  4. डूंगरसिंह के पुत्र खेमराज (अचलसिंह) के पुत्र केसरसिंह (कल्ला)|
  5. रतनसिंह कि पुत्री मीराबाई|

कल्लाजी का अवतरण: 

कल्लाजी का जन्मनाम केसरसिंह था। इनकी माता श्वेत कुंवर ईडर के लक्खूभा चौहान की पुत्री थी। यह बचपन से ही शिव-पार्वती की बड़ी भक्त थी। जब उसके कोई मदतगार कलामा न स आरामबस अपन विवाह के अन्तरवासे का एक पुतला बनाया शिव की आराधना में लीन हो गई। उसकी ऐसी तन्मयता देश शिव आन में प्राण प्रतिष्ठा कर दी। यही पुतला श्वेतकुवर का पुत्र न बना अनवासा कसर में डुबोकर बनाया जाता था इसलिए उसका रंग कांग्या होना...! सरिया मम का था अतः उससे जो बालक उदित हुआ उसका गम अमसिंह सा गया यमुह मल्लाजी जाये नहीं थे,उपाये गये थे। यह घटना संवत् १५६४ की है।

कलाजी के अवतरण पर माग मेडता फूला नहीं समाया। जन-जीवन में ही अपार माह और राम नहीं था| प्रकृति के कण-कण में भी हर्ष का असीम वेग था। बादलों में अरमाला हवा भील और सुगंधी हो गई। चन्द्रमा ने अमृत बरसाया। दक्षताओं ने मुग नष्किी। सूर्य भी एक पल रूक सा गया। सब ओर सुख और आनंद ही आनद। अगा देवपुरुष नहीं बल्कि फोई देवपुरुष अवतरित हुआ है।

भैरव के दर्शन:

जीवन में असाधारण पौरुष के धनी थे। एक दिन इन्हे मेडता में कुशालाब के किनारे कमली के पेड़ के नीचे बटुक भैरव ने दर्शन दिये और इनकी अम वीरता परिचित कराया। कहा कि तुम कोई साधारण पुरुष नहीं हो। पूर्व जन्म में भी तुम बाके में तुम्हें वरदान देता है कि बिना किसी गुरु के तुम सभी यलाओं में पाया और नियमात होओगे। तुम्हारे हाथों दीन-दुखियों का दुख दूर होकर विश्व का कल्याण होगा। तुम्हारी फने ही फी है। मां जगदम्बा तुम्हारी रक्षा करे। भैरव यह कर अन्सध्यान हो गये। कल्लाजी सब मात्र पांच वर्ष के थे। ज्यों जो कल्लाजी बढे हुए, उन्हें भैरव द्वारा दिया गया वरदान फलता रहा। उन्हें महसूस होने लगा कि बिना किसी के अताथे-सिखाये कई चीजों का ज्ञान स्वतः हो रहा है। किसी की कोई समस्या होती, कल्लाजी फटाफट उसका समाधान दे देते। अपनी उम्र से कई गुना अधिक ज्ञान समझ और भूत भविष्य की गति मति की सीख रखने के कारण सब ओर उनकी वाहवाही होने लगी।

सिंह शावक कालाजी: राजपून वीर अपनी शुरवीरता के कारण सिंह शावक कहलाते हैं। फिर कल्लाजी ने तो केवल पाच बरस की प्रमें ही नौ गला और को पछाड़ दिया यह पछाड किसी बदूक की सहायता से नही अपितु भेरू की कृपा-शनि से उसकी पु. और कान का मरोड़ा देकर दी। कल्लाजी राठौड थे। राठौड़ो के सदा ही रानिया रही। उनहोने पासवारिया कभी नही पाली। इसलिये वे शुद्ध भी बने रहे| वीरों को सिहनी का मृत इसन्निा भी करने से कि उन्हें सचमुच में सिंहनी का ही दूध पिलाया जाता...! इस दूध के साथ खरगोश काल मिला होता। तभी वीरसिंह जैसी दहाड मारता और खरगोश सी स्कृति लिये छलागे मारता। तब माताएँ भी वीर माताएँ होती। वे तीन-तीन चार-चार, बालको तक को अपना स्तन पिलाने की सामर्थ्य रखती और उसके बाद भी उन स्तनों में दूध झस्ता। पासवान्यों के बच्चों को चीतरी का दूध पिलाया जाता। राजपूत की नजरों में अपनी मा का असली दूध घूमता। तब गर्भ भी नौ माह से अधिक का होता। मेडता में आये दिन युद्ध के बादल छाये रहते। एक समय ऐसा आया जब मेहता में कोई नहीं रहा तब अचलसिंह भी सपरिवार इंटर चले गये मगर वहां भी शांति कहा थी। लडाई वहा भी जारी रही। इस लड़ाई में अचलसिंह वीरगति को प्राप्त हुन। इरस समय कल्लाजी तीन वर्ष के थे और उनकी माता को बीज गर्भ था अन: तीन दिन तक पिना अचलसिंह की लाश को रोके रखी। तीसरे दिन श्वेतकुंवर ने एक पुत्रको जन्म दिया जिसका नाम तेजसिंह रखा गया। इसके बाद अचलसिंह के साथ श्वेतकुंवर सती हो गई। सती होने वाली नारी गर्भवती नहीं होती। यदि वह गर्भवती हो तो जब तक किसी सतान को जन्म नहीं दे देती तब तक सती नहीं होती कारण की यदि गर्भ में कन्या हो तो दो सती होने का पाप लगता। ऐसा भी समय आया जन सती होने वाली को गर्भ के कारण आठ-आठ माह तक रुकना पड़ा। जब उसके सन्तान हो गई तब ही वह सती हुई। ऐसी स्थिति में मृतक पुरुष के शरीर को रख दिया जाता। पर यह शरीर भी अधिक दिन सुरक्षित नहीं रह पाता। तब केवल कंकाल के साथ महिला सती होती।

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