हम कब शरीक होते हैं दुनिया की ज़ंग में
वह अपने रंग में हैं, हम अपनी तरंग में

मफ़्तूह[1] हो के भूल गए शेख़ अपनी बहस
मन्तिक़[2] शहीद हो गई मैदाने ज़ंग में

Comments
हमारे टेलिग्राम ग्रुप से जुड़े। यहाँ आप अन्य रचनाकरों से मिल सकते है। telegram channel