"भविष्य पुराण" में शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र का उल्लेख किया गया है| जो भी व्यक्ति अथवा साधक इस स्तोत्र का नियमित रुप से पाठ करता है वह हर प्रकार की समस्या तथा व्याधियों से मुक्त हो जाता है| जो कोई व्यक्ति असाध्य रोग से पीड़ित है उसके लिए यह पाठ राम बाण सिद्ध होता है| यदि पीड़ित व्यक्ति यह पाठ करने में असमर्थ है तब वह किसी ऎसे व्यक्ति से पाठ सुन सकता है अथवा करवा सकता है जिसे संस्कृत पढ़नी आती हो|

इस स्तोत्र का 1100 बार जाप करने से यह प्रभावशाली रुप से फल प्रदान करता है| किसी विद्वान आचार्य से संकल्प कराकर 1100 बार पाठ करना चाहिए| यदि 1100 बार पाठ करना संभव ना हो पाए तब कम से कम 125 बार पाठ अवश्य ही करना चाहिए| जो व्यक्ति स्वयं इस स्तोत्र का नियमित रुप से पाठ करते हैं वह सभी प्रकार के भौतिक, दैविक तथा दैहिक कष्टों से छुटकारा पाते हैं|

इस शनि स्तवराज स्तोत्र का पाठ उन सभी लोगों को करना चाहिए जिन पर शनि का प्रकोप चल रहा हो| इसके अलावा जिन लोगों की कुंडली में शनि की महादशा अथवा अन्तर्दशा चल रही है, उन्हें भी इसका पाठ करना चाहिए| जो जातक इस स्तोत्र का पाठ हर शनिवार अथवा प्रतिदिन करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं| शनिवार के दिन इसका पाठ अवश्य करना चाहिए| इस स्तोत्र का पाठ करने वाला व्यक्ति पुत्रवान तथा धनवान होता है|

विनियोग

अस्य श्रीशनैश्चरस्तवराजस्य सिन्धुद्वीपऋषि:, गायत्री छन्द:, आपो देवता, शनैश्चरप्रीत्यर्थं पाठे विनियोग:।

नारद उवाच

ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः ।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम ।।1।।

शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोऽवतु ।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।2।।

घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोऽवतु ।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोऽवतु ।।3।।

सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोऽवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः।।4।।

पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम्।।5।।

सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शनिः।।6।।

शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः।।7।।

कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः।।8।।

नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः ।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः।।9।।

ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुतः।।10।।

केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा ।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः।।11।।

विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः ।
कर्त्ता-हर्ता पालयिता राज्येशो राज्यदायकः।।12।।

छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः ।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः।।13।।

तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः।।14।।

स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः।।15।।

आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः ।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः।।16।।

तिथात्मा तिथिगणो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः।।17।।

शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः।।18।।

सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः ।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः।।19।।

पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।20।।

विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति ।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे।।21।।

दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः।।22।।

विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा याऽन्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।।23।।

भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।।24।।

पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः।।25।।

स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोऽभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।।26।।

॥ इति श्री भविष्यपुराणे शनैश्चरस्तवराजः सम्पूर्णः ॥

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