इंडोनेशिया में प्राचीन मंदिरों को चण्डी के नाम से पुकारा जाता है अतः "बोरोबुदुर मंदिर" को कई बार चण्डी बोरोबुदुर भी कहा जाता है। चण्डी शब्द भी शिथिलतः प्राचीन बनावटों जैसे द्वार और स्नान से सम्बंधित रचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है। यद्यपि बोरोबुदुर शब्द का मूल अस्पष्ट है तथा इंडोनेशिया के प्रमुख प्राचीन मंदिर ज्ञात नहीं हैं। बोरोबुदुर शब्द सर्वप्रथम सर थॉमस रैफल्स की पुस्तक जावा का इतिहास में प्रयुक्त हुआ था। रैफल्स ने बोरोबुदुर नामक एक स्मारक के बारे में लिखा लेकिन इस नाम का इससे पुराना कोई दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं है। केवल प्राचीन जावा तालपत्र ही इस ओर संकेत करते हैं कि स्मारक का नाम बुदुर पवित्र बौद्ध पूजास्थल नगरकरेतागमा को कहा जाता है। यह तालपत्र मजापहित राजदरबारी एवं बौद्ध विद्वान मपु प्रपंचा द्वारा सन् १३६५ में लिखा गया था।
कुछ मतों के अनुसार बोरोबुदुर, नाम बोरे-बुदुर का अपभ्रंश रूप है जो रैफल्स ने अंग्रेज़ी व्याकरण में लिखा था जिसका अर्थ "''बोरे गाँव के निकटवर्ती बुदुर का मंदिर" था; अधिकांश चण्डियों का नामकरण निकटम गाँवों के नाम पर हुआ है। यदि इसे जावा भाषा के अनुरूप समझा जाये तो स्मारक का नाम "बुदुरबोरो" होना चाहिए/ रैफल्स ने यह भी सुझाव दिया कि बुदुर सम्भवतः आधुनिक जावा भाषा के शब्द बुद्ध से बना है ― "प्राचीन बोरो"। हालांकि अन्य पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार नाम (बुदुर) का दूसरा घटक जावा भाषा जे शब्द भुधारा ("पहाड़") से बना है।
अन्य सम्भावित शब्द-व्युत्पतियों के अनुसार बोरोबुदुर संस्कृत शब्द विहार बुद्ध उहर के लिखे हुये रूप बियरा बेदुहुर का स्थानीय जावा सरलीकृत अपभ्रष्ट उच्चारण है। शब्द बुद्ध-उहर का अर्थ "बुद्ध का नगर" हो सकता है जबकि अन्य सम्भावित शब्द बेदुहुर प्राचीन जावा भाषा का शब्द है जो आजतक बली शब्दावली में मौजूद है जिसका अर्थ एक "उच्च स्थान" होता है जो स्तंभ शब्द धुहुर अथवा लुहुर (उच्च) से बना है। इसके अनुसार बोरोबुदुर का अर्थ उच्च स्थान अथवा पहाड़ी इलाके में बुद्ध के विहार (मट्ठ) से है।
धार्मिक बौद्ध इमारत का निर्माण और उद्घाटन—सम्भवतः बोरोबुदुर के सम्बंध में—दो शिलालेखों में उल्लिखीत है। दोनों केदु, तमांगगंग रीजेंसी में मिले। सन् ८२४ से दिनांकित कायुमवुंगान शिलालेख के अनुसार समरतुंग की पुत्री प्रमोदवर्धिनी ने जिनालया (उन लोगों का क्षेत्र जिन्होंने सांसारिक इच्छा और और अपने आत्मज्ञान पर विजय प्राप्त कर ली) नामक धार्मिक इमारत का उद्घाटन किया। सन् ८४२ से दिनांकित त्रितेपुसन शिलालेख के सिमा में उल्लिखीत है कि क्री कहुलुन्नण (प्रमोदवर्धिनी) द्वारा भूमिसम्भार नामक कमूलान को धन और रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए भूमि (कर-रहित) प्रदान की। कमूलान, मुला शब्द के रूप में है जिसका अर्थ "उद्गम स्थल" होता है, पूर्वजों की याद में एक धार्मिक स्थल जो सम्भवतः शैलेन्द्र राजंवश से सम्बंधित है। कसपरिस के अनुसार बोरोबुदूर का मूल नाम भूमि सम्भार भुधार है जो एक संस्कृत शब्द है और इसका अर्थ "बोधिसत्व के दस चरणों के संयुक्त गुणों का पहाड़" है।