सुत्तपिटक बौद्ध धर्म का एक ग्रंथ है। यह ग्रंथ त्रिपिटक के तीन भागों में से एक है। सुत्त पिटक में तर्क और संवादों के रूप में भगवान बुद्ध के सिद्धांतों का संग्रह है। इनमें गद्य संवाद हैं, मुक्तक छन्द हैं तथा छोटी-छोटी प्राचीन कहानियाँ हैं। यह पाँच निकायों या संग्रहों में विभक्त है। ।

परिचय

इस पिटक के पाँच भाग हैं जो निकाय कहलाते हैं। निकाय का अर्थ है समूह। इन पाँच भागों में छोटे बड़े सुत्त संगृहीत हैं। इसीलिए वे निकाय कहलाते हैं। निकाय के लिए "संगीति" शब्द का भी प्रयोग हुआ है। आरम्भ में, जब कि त्रिपिटक लिपिबद्ध नहीं था, भिक्षु एक साथ सुत्तों का पारायण करते थे। तदनुसार उनके पाँच संग्रह संगीति कहलाने लगे। बाद में निकाय शब्द का अधिक प्रचलन हुआ और संगीति शब्द का बहुत कम।

कई सुत्तों का एक बग्ग (वर्ग) होता है। एक ही सुत्त के कई भाण भी होते हैं। 8000 अक्षरों का भाणवार होता है। तदनुसार एक-एक निकाय की अक्षर संख्या का भी निर्धारण हो सकता है। उदाहरण के लिए दीर्घनिकाय के 34 सुत्त हैं और भाणवार 64। इस प्रकार सारे दीर्घनिकाय में 512000 अक्षर हैं।

सुत्तों में भगवान तथा सारिपुत्र मौद्गल्यायन, आनंद जैसे उसे कतिपय शिष्यों के उपदेश संगृहीत हैं। शिष्यों के उपदेश भी भगवान द्वारा अनुमोदित हैं।

प्रत्येक सुत्त की एक भूमिका है, जिसका बड़ा ऐतिहासिक मत है। उसमें इन मतों का उल्लेख है कि कब, किस स्थान पर, किस व्यक्ति या किन व्यक्तियों को वह उपदेश दिया गया था और श्रोताओं पर उसका क्या प्रभाव पड़ा।

अधिकतर सुत्त गद्य में हैं, कुछ पद्य में और कुछ गद्य-पद्य दोनों में। एक ही उपदेश कई सुत्तों में आया है- कहीं संक्षेप में और कहीं विस्तार में। उनमें पुनरुक्तियों की बहुलता है। उनके संक्षिप्तीकरण के लिए "पय्याल" का प्रयोग किया गया है। कुछ परिप्रश्नात्मक है। उनमें कहीं-कहीं आख्यानों और ऐतिहासिक घटनाओं का भी प्रयोग किया गया है। सुत्तपिटक उपमाओं का भी बहुत बड़ा भंडार है। कभी-कभी भगवान उपमाओं के सहारे भी उपदेश देते थे। श्रोताओं में राजा से लेकर रंग तक, भोले-भाले किसान से लेकर महान दार्शनिक तक थे। उन सबके अनुरूप ये उपमाएँ जीवन के अनेक क्षेत्रों सी ली गई हैं।

बुद्ध जीवनी, धर्म, दर्शन, इतिहास आदि सभी दृष्टियों से सुत्तपिटक त्रिपिटक का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। बुद्धगया के बोधिगम्य के नीचे बुद्धत्व की प्राप्ति से लेकर कुशीनगर में महापरिनिर्वाण तक 45 वर्ष भगवान बुद्ध ने जो लोकसेवा की, उसका विवरण सुत्तपिटक में मिलता है। मध्य मंडल में किन-किन महाजनपदों में उन्होंने चारिका की, लोगों में कैसे मिले-जुले, उनकी छोटी-छोटी समस्याओं से लेकर बड़ी-बड़ी समस्याओं तक के समाधान में उन्होंने कैसे पथ-प्रदर्शन किया, अपने संदेश के प्रचार में उन्हें किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा- इन सब बातों का वर्णन हमें सुत्तपिटक में मिलता है। भगवान बुद्ध के जीवन संबंधी ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन ही नहीं; अपितु उनके महान शिष्यों की जीवन झाँकियाँ भी इसमें मिलती हैं।

सुत्तपिटक का सबसे बड़ा महत्व भगवान द्वारा उपदिष्ट साधनों पद्धति में है। वह शील, समाधि और प्रज्ञा रूपी तीन शिक्षाओं में निहित है। श्रोताओं में बुद्धि, नैतिक और आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से अनेक स्तरों के लोग थे। उन सभी के अनुरूप अनेक प्रकार से उन्होंने आर्य मार्ग का उपदेश दिया था, जिसमें पंचशील से लेकर दस पारमिताएँ तक शामिल हैं। मुख्य धर्म पर्याय इस प्रकार हैं- चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग, सात बोध्यांग, चार सम्यक् प्रधान पाँच इंद्रिय, प्रतीत्य समुत्पाद, स्कंध आयतन धातु रूपी संस्कृत धर्म नित्य दुःख-अनात्म-रूपी संस्कृत लक्षण। इनमें भी सैंतिस क्षीय धर्म ही भगवान के उपदेशों का सार है। इसका संकेत उन्होंने महापरिनिर्वाण सुत्त में लिखा है। यदि हम भगवान के महत्वपूर्ण उपदेशों की दृष्टि से सुत्तों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करें तो हमें उनमें घुमा फिराकर ये ही धर्मपर्याय मिलेंगे। अंतर इतना ही है कि कहीं ये संक्षेप में हैं और कहीं विस्तार में हैं। उदाहरणार्थ सुत्त निकाय के प्रारंभिक सुत्तों में चार सत्यों का उल्लेख मात्र मिलता है, धम्मचक्कपवत्तन सुत्त में विस्तृत विवरण मिलता है और महासतिपट्ठान में इनकी विशद व्याख्या भी मिलती है।

सुत्तों की मुख्य विषयवस्तु तथागत का धर्म और दर्शन ही है। लेकिन प्रकारांतर से और विषयों पर भी प्रकाश पड़ता है। जटिल, परिव्राजक, आजीवक और निगंठ जैसे जो अन्य श्रमण और ब्राह्मण संप्रदाय उस समय प्रचलित थे, उनके मतवादों का भी वर्णन सुत्तों में आया है। वे संख्या में 62 बताए गए हैं। यज्ञ और जातिवाद पर भी कई सुत्तंत हैं।

भारत मगध, कोशल, वज्जि जैसे कई राज्यों में विभाजित था। उनमें कहीं राजसत्तात्मक शासन था तो कहीं गणतंत्रात्मक राज्य। उनका आपस का संबंध कैसा था, शासन प्रशासन कार्य कैसे होते थे- इन बातों का भी उल्लेख कहीं-कहीं मिलता है। साधारण लोगों की अवस्था, उनकी रहन-सहन, आचार-विचार, भोजन छादन, उद्योग-धंधा, शिक्षा-दीक्षा, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान, मनोरंजन, खेलकूद आदि बातों का भी वर्णन आया है। ग्राम, निगम, राजधानी, जनपद, नदी, पर्वत, वन, तड़ाग, मार्ग, ऋतु आदि भौगोलिक बातों की भी चर्चा कम नहीं है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सुत्तपिटक का महत्व न केवल धर्म और दर्शन की दृष्टि से है, अपितु बुद्धकालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक और भौगोलिक स्थिति की दृष्टि से भी है। इन सुत्तों में उपलब्ध सामग्री का अध्ययन करके विद्वानों ने निबंध लिखकर अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला है।

सुत्तपिटक के पाँच निकाय इस प्रकार हैं: दीघ निकाय, मज्झिम निकाय, संयुत्त निकाय, अंगुत्तर निकाय और खुद्दक निकाय। सर्वास्तिवादियों के सूत्रपिटक में भी पाँच निकाय रहे हैं, जो 'आगम' कहलाते थे (एकोत्तर आगम, देखें)। उनके मूल ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं। सभी ग्रन्थों का चीनी अनुवाद और कुछ का तिब्बती अनुवाद उपलब्ध है। उनके नाम इस प्रकार हैं: दीर्घागम, मध्यमागम, संयुक्तागम, एकोत्तरागम और क्षुद्रकागम। मुख्य बातों पर निकायों और आगामों में समानता है। इस विषय पर विद्वानों ने प्रकाश डाला है।
विभाजन

इसका विस्तार इस प्रकार है-

    दीघनिकाय (दीघ = दीर्घ = लम्बा; भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्चित लम्बे सूत्रों का संकलन)

    मज्झिमनिकाय (मज्झिम = मध्यम; भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्चित मध्यम सूत्रों का संकलन)

    संयुत्तनिकाय (संयुत्त = संयुक्त; भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्चित लम्बे, छोटे सूत्रों का संयुक्त संकलन)

    अंगुत्तरनिकाय (अंगुत्तर = अंकोत्तर = अंक अनुसार; धर्म को अंक अनुसार संग्रहित ग्रंथ)

    खुद्दकनिकाय (खुद्दक = क्षुद्र्क = छोटा; भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्चित छोटे सूत्रों का संकलन)
        खुद्दक पाठ
        धम्मपद
        उदान
        इतिवुत्तक
        सुत्तनिपात
        विमानवत्थु
        पेतवत्थु
        थेरगाथा
        थेरीगाथा
        जातक
        निद्देस
        पटिसंभिदामग्ग
        अपदान
        बुद्धवंस
        चरियापिटक

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel