अल्फ़ाजों को कभी जो हम चुन पाते
तो शायद अपनी बात भी तुमसे कह पाते
न होती दूरियों की यूँ मजबूरियां दरमियाँ
हमे कुछ, कुछ हमारे जज़्बात को तुम समझ पाते |
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