बहुत से लोगों का विचार है कि नेहरू ने अन्य नेताओं की तुलना में भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत कम योगदान दिया था फिर भी गांधीजी ने उन्हे भारत का प्रथम प्रधानमन्त्री बना दिया। स्वतंत्रता के बाद कई दशकों तक भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के सूत्रधारों ने प्रकारान्तर से देश में राजतंत्र चलाया, विचारधारा के स्थान पर व्यक्ति पूजा को प्रतिष्ठित किया और तथाकथित लोकप्रियता के प्रभामंडल से आवेष्टित रह लोकहित की पूर्णत: उपेक्षा की।

नेहरू को महात्मा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर जाना जाता है। गांधी पर यह आरोप भी लगता है कि उन्होंने राजनीति में नेहरू को आगे बढ़ाने का काम सरदार वल्लभभाई पटेल समेत कई सक्षम नेताओं की कीमत पर किया। जब आजादी के ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष बनने की बात थी और माना जा रहा था कि जो कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा वही आजाद भारत का पहला प्रधानमन्त्री होगा तब भी गांधी ने प्रदेश कांग्रेस समितियों की सिफारिशों को अनदेखा करते हुए नेहरू को ही अध्यक्ष बनाने की दिशा में सफलतापूर्वक प्रयास किया। इससे एक आम धारणा यह बनती है कि नेहरू ने न सिर्फ महात्मा गांधी के विचारों को आगे बढ़ाने का काम किया होगा बल्कि उन्होंने उन कार्यों को भी पूरा करने की दिशा में अपनी पूरी कोशिश की होगी जिन्हें खुद गांधी नहीं पूरा कर पाए। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। यह बात कोई और नहीं बल्कि कभी नेहरू के साथ एक टीम के तौर पर काम करने वाले जयप्रकाश नारायण ने 1978 में आई पुस्तक 'गांधी टूडे' की भूमिका में कही थी। जेपी ने नेहरू के बारे में कुछ कहा है तो उसकी विश्वसनीयता को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए क्योंकि नेहरू से जेपी की नजदीकी भी थी और मित्रता भी। लेकिन इसके बावजूद जेपी ने नेहरू माॅडल की खामियों को उजागर किया।

अप्रैल २०१५ में यह भी खुलासा हुआ कि स्वतंत्रता के बाद नेहरू ने बीस वर्षों तक आईबी द्वारा नेताजी के सम्बन्धियों की जासूसी करायी।

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel