प्रसिद्ध कविता

अंतरद्वंद्व

अपने ही मन से कुछ बोलें

ऊँचाई

एक बरस बीत गया

क़दम मिला कर चलना होगा

कौरव कौन, कौन पांडव

क्षमा याचना

जीवन की ढलने लगी साँझ

झुक नहीं सकते

दो अनुभूतियाँ

पुनः चमकेगा दिनकर

मनाली मत जइयो

मैं न चुप हूँ न गाता हूँ

मौत से ठन गई

हरी हरी दूब पर

हिरोशिमा की पीड़ा

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