इटली का अभियान नैपोलियन की सैनिक तथा प्रशासकीय क्षमता का ज्वलंत उदाहरण था। इस बात की घोषणा पूर्व ही कर दी गई थी कि फ्रेंच सेना इटली को ऑस्ट्रिया की दासता से मुक्त कराने आ गयी है। उसने पहले तीन स्थानों पर शत्रु को परास्त कर ऑस्ट्रिया का (Piedmont) से संबंध तोड़ दिया। तब सारडीनिया को युद्धविराम करने के लिए विवश कर दिया। फिर लोडी के स्थान में उसे मीलान प्राप्त हुआ। रिवोली के युद्ध में मैंटुआ को समर्पण करना पड़ा। आर्कड्यूक चार्ल्स को भी संधिपत्र प्रस्तुत करना पड़ा और ल्यूबन (Leoben) का समझौता हुआ। इन सारे युद्धों और वार्ताओं में नैपोलियन ने पेरिस से किसी प्रकार का आदेश नहीं लिया। पोप को भी संधि करनी पड़ी। लोंबार्डी को सिसालपाइन तथा जिनोआ को लाइग्यूरियन गणतंत्र में परिवर्तित कर फ्रेंच नमूने पर एक विधान दिया। इन सफलताओं से ऑस्ट्रिया के पैर उखड़ गए और उसे कैंपो फौर्मियों (Campo Formio) की संधि के लिए नैपोलियन के संमुख नत होना पड़ा तथा इस जटिल परिस्थिति में ऑस्ट्रिया को अपने बेललियम प्रदेशों से और राइन के सीमांत क्षेत्रों तथा लोंबार्डी से अपना हाथ खींच लेना पड़ा। नैपोलियन के इन युद्धों से तथा छोटे राज्यों को समाप्त कर वृहत् इकाई में परिवर्तित करने के कार्यों से, इटली में एक राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा हुआ जो इतिहास में रीसॉर्जीमेंटो (Risorgimento) के नाम से प्रसिद्ध है।

इटालियन अभियान से लौटने पर नैपोलियन का भव्य स्वागत हुआ। डाइरेक्टरी भी भयभीत हो गई तथा नैपोलियन को फ्रांस से दूर रखने का उपाय सोचने लगी। इस समय फ्रांस का प्रतिद्वंद्वी केवल ब्रिटेन रह गया था। नैपोलियन ने ब्रिटेन को हराने के लिए उसके साम्राज्य पर कुठाराघात न करना उचित समझा तथा अपनी मिस्र-अभियान-योजना रखी। डाइरेक्टरी ने उसे तुरंत स्वीकार कर लिया। १७९८ ई॰ में बोनापार्ट ने मिस्र के लिए प्रस्थान किया। ब्रिटेन पर प्रत्यक्ष आक्रमण करने के स्थान पर ब्रिटेन के पूर्वी साम्राज्य को मिस्त्र के माध्यम से समाप्त करने की योजना फ्रेंच शासकों को संगत प्रतीत हुई। मैमलुक तुर्की से इसका सामना पैरामिड के तथाकथित युद्ध में हुआ। किंतु ब्रिटिश नौसेना का भूमध्यसागरीय अध्यक्ष कमांडर नेल्सन नैपोलियन का पीछा कुशलतापूर्वक कर रहा था। उसने आगे बढ़कर फ्रांसीसियों को नील नदी के युद्ध में तितर-बितर कर दिया तथा टर्की को भी इंगलैड की ओर से युद्ध में प्रवेश करने के लिए विवश कर दिया। नेल्सन की इस सफलता ने ब्रिटेन को एक द्वितीय गुट बनाने का अवसर दिया और यूरोप के वे राष्ट्र, जिन्हें नैपोलियन दबा चुका था, फ्रांस के विरुद्ध अभियान की तैयारी करने लगे।

तुर्की के युद्ध में प्रविष्ट हो जाने पर नैपोलियन ने सीरिया का अभियान छेड़ा। केवल तेरह हजार की एक सीमित टुकड़ी के साथ एकर (Acre) की ओर बढ़ा किंतु सिडनी स्मिथ जैसे कुशल सेनानी द्वारा रोक दिया गया। यह नैपोलियन के लिए वरदान सिद्ध हुआ। अब नैपोलियन सीरिया में एक दूसरे फ्रेंच साम्राज्य की रचना में लग गया। किंतु फ्रांस इस समय एक नाजुक स्थिति से गुजर रहा था। अत: नैपोलियन ने मिस्र में अपनी सत्ता स्थापित करने में सफलीभूत होते हुए भी फ्रांस में प्रकट हो जाना वांछनीय समझा। नैपोलियन के फ्रांस में प्रवेश करते ही हलचल पैदा हो गई। अनुकूल वातावरण पाकर नवंबर, १७९९ में नैपोलियन ने सत्ता हथिया कर डायरेक्टरी का विघटन किया और नया विधान बनाया। इस विधान के अनुसार तीन कौंसल (Consul) नियुक्त हुए। कुछ समय पश्चात् सारी शक्तियाँ प्रथम कौंसल नैपोलियन में केद्रित हो गई। फ्रांस एक दीर्घ अशांति से थक चुका था तथा क्रांति को स्थापित्व की ओर ले जाने के लिए अन्तरकालीन शांति परम आवश्यक थी। किंतु शांति स्थापना के पूर्व ऑस्ट्रिया को नतमस्तक कर देने के लिए एक इटालियन अभियान आवश्यक था।

नैपोलियन ने १८०० ई॰ में इटली का दूसरा अभियान बसंत ऋतु में प्रारंभ किया तथा मेरेंगो (Marengo) की विजय प्राप्त कर आस्ट्रिया को ल्यूनविल (Luneville) की संधि के लिए विवश कर दिया, जिसमें पहले की कैम्पोफोर्मियों की सारी शर्तें दोहराई गई। अब द्वितीय गुट टूट गया और नेपोलियन ने इंगलैंड से आमिऐं (Amiens) की संधि १८०१ ई॰ में की, जिसके अंतर्गत दोनों राष्ट्रों ने एक दूसरे के विजित प्रदेश वापस किए। अब नेपोलियन ने एक सुधार योजना कार्यान्वित कर फ्रांस को शासन और व्यवस्था दी। फ्रांस की आर्थिक स्थिति में अनुशासन दिया। शिक्षा पद्धति में अभूतपूर्व परिवर्तन किए। भूमिकर व्यवस्था सुदृढ़ की। पेरिस का सौंदर्यीकरण किया। सेना में यथेष्ट परिवर्तन किए तथा फ्रांस की व्यवस्था को एक वैज्ञानिक आधार दिया, जो अब भी नेपोलियन कोड के नाम से विख्यात है। पोप से एक कॉन कौरडेट (Concordat) कर कैथलिक जगत् का समर्थन प्राप्त कर लिया।

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