डूबते अरमानो की तैरती लाशे देखी है हमने।
मासूम मुस्कानो पर घूरती आँखे सेंकी हैं हमनें।
हम बात बड़ी बड़ी करते हैं गीता और कुरान की।
दिल मे दरिंदा बैठा,लुट रही आबरू हिंदुस्तान की।
मन के सागर में भरा पड़ा है हलाहल दरिंदगी का।
कब सोचता हैं कोई दरिंदा, किसी की जिंदगी का।
जिंदगी को जहन्नुम बना रही है नस्ले ये शैतान की।
कब तक यूँ रौंदी जाएगी बेटियाँ मेरे हिंदुस्तान की।
नर मुण्ड की माला पहन बेटियों को निकलना होगा।
कट्टा बम पिस्तौल लेकर बेटियों को अब चलना होगा।
खड़ग लेकर हाथो में,गर्दन अलग करदो हैवान की।
बता दो जग को बेटो से कम नही बेटी हिंदुस्तान की।
कवि महेश दाँगी "उटपटाँग" भोपावर