रात का समय है और चांदनी छिटकी हुई। आसमान पर कहीं-कहीं छोटे बादलों के टुकड़े दौड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं जिनमें कभी-कभी चन्द्रमा छिपता और फिर तेजी के साथ निकल आता है। इस समय रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ की मनभावन छटा बहुत भली मालूम पड़ती है। महल की छत पर किशोरी, कामिनी, कमलिनी, लाडिली, लक्ष्मीदेवी और कमला टहलती हुई चारों तरफ की कैफियत देख रही हैं। इस समय की शोभा, छटा या प्राकृतिक अवस्था जो कुछ भी कहें उन सबके दिल पर जुदे ढंग का असर कर रही है। कमलिनी अपने ध्यान में डूबी हुई, लक्ष्मीदेवी कुछ और ही सोच रही है, लाडिली किसी दूसरे ही सम्भव-असम्भव के विचार में पड़ी है, किशोरी और कामिनी अलग ही मन के लड्डू बना रही हैं। मगर कमला के दिल का कोई ठिकाना नहीं। उसने जब से यह सुन लिया है कि भूतनाथ गिरफ्तार करके रोहतासगढ़ के कैदखाने में डाल दिया गया है तब से वह तरह-तरह की बातें सोच रही है। भूतनाथ वास्तव में कौन है उसने क्या कसूर किया वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग उससे खुश थे - फिर यकायक रंज क्यों हो गए और यह तारा कभी-कभी लक्ष्मीदेवी के नाम से क्यों पुकारी जाती है। कमलिनी तारा का अदब क्यों करने लग गई इत्यादि बातों को जानने के लिए उसका जी बेचैन हो रहा है मगर अभी तक किसी ने इन बातों का जिक्र उससे न किया है। हां, इस समय इन्हीं विषयों पर बात करने का वादा है परन्तु कमला इसी बात का मौका ढूंढ़ रही है कि ये सब एक ठिकाने बैठ जायं तो बातों का सिलसिला छेड़ा जाय।

घण्टे - भर तक टहल-टहलकर चारों ओर देखने के बाद सबकी सब एक ठिकाने फर्श पर बैठ गईं और कमला ने बातचीत करना आरम्भ कर दिया।

कमला - (किशोरी से) क्यों बहिन! भूतनाथ तो राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों के साथ मिल-जुलकर काम करता था और सब कोई उससे खुश थे, फिर यकायक यह क्या हो गया कि उसे कैदखाने की गर्म हवा खानी पड़ी?

किशोरी - इसका हाल कमलिनी बहिन से पूछो।

कामिनी - क्योंकि वह इन्हीं का ऐयार था और इन्हीं की आज्ञानुसार काम करता था।

कमलिनी - (हंसकर) किसी का ऐयार था या किसी का बाप था, इससे क्या मतलब जो था सो था - अब न कोई उसे अपना ऐयार बनाना पसन्द करेगा और न कोई अपना बाप कहना स्वीकार करेगा।

किशोरी - (मुस्कुराकर) जिस तरह अब तुम मायारानी को अपनी बहिन कहना उचित नहीं समझतीं।

कमलिनी - नहीं-नहीं, इस तरह और उस तरह में तो बड़ा फर्क है। कम्बख्त मायारानी तो वास्तव में हमारी बहिन है ही नहीं!

कमला - (ताज्जुब से) मायारानी तुम्हारी बहिन नहीं है फिर तुमने मुझसे क्यों कहा था कि 'मायारानी हमारी बड़ी बहिन है!'

कमलिनी - तब तक मैं उसका असल हाल नहीं जानती थी, उसी तरह जिस तरह तुम भूतनाथ का असल हाल नहीं जानतीं और जब जान जाओगी तो न मालूम तुम्हारे दिल का क्या हाल होगा। खैर, वह सब जो कुछ हो लेकिन भूतनाथ का सच्चा-सच्चा हाल कभी-न-कभी तुम्हें मालूम हो ही जायगा। मगर देखो बहिन, दुनिया में कोई किसी के दोष का भागी नहीं हो सकता। जिस तरह ईमानदार बाप बदनीयत लड़के के दोष से दोषी नहीं हो सकता उसी तरह धर्मात्मा लड़का अपने कपटी कुटिल तथा कुचाली बाप के कामों का उत्तरदायी नहीं हो सकता। हर एक आदमी अपने किए का फल आप ही भोगेगा, उसके बदले में उसका कोई नातेदार या मित्र दण्ड नहीं पा सकता, पर हां बचाव में मदद जरूर कर सकता है, इसी के साथ-ही-साथ यह भी बंधी हुई बात है कि अच्छे और बुरे का साथ बहुत दिनों तक निभ नहीं सकता चाहे वह आपस में दोस्त हों या भाई हों या बाप-बेटे हों, क्योंकि दोनों की प्रकृति में भेद रहता है और जब तक दोनों की प्रकृति एक या कुछ-कुछ मिलती-जुलती न हो, प्रेम नहीं हो सकता।

कमला - क्षमा करना, क्योंकि मैं बीच ही मैं टोकती हूं - तब लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि 'बुरे की सोहबत करने से अच्छा आदमी भी बुरा हो जाता है

कमलिनी - ठीक है, जहां तक मैं समझती हूं किसी एक बुरे आदमी की सोहबत में कोई एक भला आदमी बुरा नहीं हो सकता, बल्कि एक बुरा आदमी किसी एक भले आदमी के साथ से कुछ सुधर सकता है - क्योंकि मन एक शुद्ध पदार्थ होता है। यदि वह किसी तरह के दबाव में न पड़ जाय या किसी तरह की जरूरियात उसे मजबूर न करें तो वह बराबर सचाई ही की तरफ ढुलकता रहता है - हां, यदि कोई एक अच्छे चालचलन का आदमी चार-पांच या दस-बीस बदमाशों की सोहबत में बैठे, तो निःसन्देह वह कुचाली हो ही जायगा क्योंकि बहुत से नापाक दिल मिल-जुलकर उस पाक-दिल पर जबर्दस्त हो जायेंगे - और सच तो ये है कि सोहबत एक आदमी के संग को नहीं कहते बल्कि कई आदमियों के झुण्ड में मिलकर बैठने का नाम सोहबत है। हां, तो मैं क्या कह रही थी, जब तुमने टोका था - बिल्कुल ही भूल गई! इसी से कहते हैं कि बातों के सिलसिले में टोकना अच्छा नहीं होता।

कमला - ठीक है, तभी तो मैंने पहले ही क्षमा मांग ली थी। खैर, जाने भी दो। मैं तुम्हारी बातों का मतलब पा गई कि तुम भूतनाथ को मेरा नातेदार बनाना चाहती हो।

कमलिनी - मैं क्यों बनाना चाहती हूं! ईश्वर ही ने उसे तुम्हारा नातेदार बनाया है, खैर, मैं सबसे पहले तुमसे नानक का हाल कहती हूं। नानक ने अपना हाल स्वयं ही तेजसिंह से कहा था और मैं उस समय छिपकर उसे सुन रही थी। इसके बाद और लोगों को भी वह हाल मालूम हुआ।

तब कमलिनी ने पिछला बहुत-सा हाल जो गुजर चुका था वह कह सुनाया और तब तेजसिंह का पागल बन के मायारानी के बाग में जाना और वहां की कैफियत जनाना, नानक का हाल, चंडूल की दिल्लगी, भूतनाथ और शेरसिंह का रंग-ढंग तथा बाकी का सब हाल भी कहा जिसे बड़े गौर और आश्चर्य से सब सुनती रहीं। इस समय कमला के दिल की अजब हालत थी, उसकी आंखों के सामने उसके लड़कपन का जमाना घूम रहा था। वह उस समय की बातों को अच्छी तरह याद कर-करके सोच रही थी जब उसकी मां जीती थी और उसका बाप बहुत दिनों तक गैरहाजिर रहा करता था। अन्त में उसका बाप यकायक गायब हो गया था और किसी अनजान आदमी ने उसके मरने की खबर कमला के नाना को पहुंचाई थी। उन दिनों कमला के बाप के बारे में तरह-तरह की खबरें उड़ रही थीं। आखिर जब कमला का चाचा शेरसिंह कमला के घर गया और उसने स्वयं कहा कि 'बेशक कमला का बाप मेरे सामने मरा और मैंने ही उसकी दाह-क्रिया की है', तब सभी को उसके मरने का विश्वास हुआ था।

कमला - हां, तो इस किस्से से साबित होता है बल्कि मेरा दिल गवाही देता है कि भूतनाथ मेरा रिश्तेदार है।

कमलिनी - बेशक ऐसा ही है।

कमला - तो साफ-साफ जल्दी क्यों नहीं कह देतीं कि वह मेरा कौन है यद्यपि मैं समझ गई हूं तथापि अपने मुंह से कुछ कह नहीं सकती।

कमलिनी - अच्छा, तो मैं कहे देती हूं कि वह तुम्हारा बाप है और नानक तुम्हारा भाई।

कमला - तो उसने अपने मरने की झूठी खबर क्यों मशहूर की थी नानक के किस्से से तो केवल इतना ही जाना जाता है कि राजा वीरेन्द्रसिंह के यहां चोरी करने के कारण उसे ऐसा करना पड़ा था।

कमलिनी - पहले तो मैं भी ऐसा ही समझती थी और भूतनाथ ने भी इसके सिवा और कोई सबब अपने गायब होने का नहीं कहा था, मगर अब जो बातें मालूम हुई हैं वे बहुत ही भयानक हैं और इस योग्य हैं कि उनका फल भोगने के डर से उसका जहां तक हो अपने को छिपाना उचित ही था। ओफ! भूतनाथ ने मुझे बड़ा धोखा दिया। अगर भूतनाथ के कागजात जो मनोरमा के कब्जे में थे और जो मेरे उद्योग से भूतनाथ को मिल गये थे, इस समय मौजूद होते तो बेशक बहुत-सी बातों का पता लगता, मगर अफसोस! अपनी भूल का दण्ड सिवाय अपने और किसको दूं?

कमला - बहिन, चाहे जो हो मैं अपनी मां की नसीहत कदापि भूल नहीं सकती और न उसके विपरीत ही कुछ कर सकती हूं। ईश्वर उसकी आत्मा को सुखी करे, वह बड़ी ही नेक थी। जिस समय चाचा ने मेरे बाप के मरने की खबर पहुंचाई थी, उस समय वह बहुत ही बीमार थी। सब लोग तो रोने-पीटने लगे, मगर उसकी आंखों में आंसू की बूंद भी दिखाई नहीं दी। इसका कारण लोगों ने यही बताया कि रंज बहुत ज्यादा है जिससे यह बेसुध हो रही है, मगर मेरी मां ने मुझे चुपके से बुला के समझाया और यह भी कहा कि ''बेटी! मैं खूब समझती हूं कि तेरा बाप मरा नहीं है, बल्कि कहीं छिपा बैठा है, और वास्तव में उसका चाल-चलन ऐसा नहीं कि वह हम लोगों को अपना मुंह दिखाए मगर क्या किया जाय वह मेरा पति है, किसी के आगे उसकी निन्दा करना मेरा धर्म नहीं है। मैं खूब समझती हूं कि अबकी दफे की बीमारी से मैं किसी तरह बच नहीं सकती, इसीलिए तुझे समझाती हूं कि यदि कदाचित् तेरा बाप तुझे मिल जाय तो तू उससे किसी तरह की भलाई की आशा न रखना। हां, तेरा चाचा बहुत ही लायक है, वह सिवाय भलाई के तेरे साथ बुराई कभी न करेगा, मगर मेरी समझ में नहीं आता कि उसने स्वयं अपने भाई के मरने की झूठी खबर क्यों उड़ाई खैर, जो हो मैं अपने सिर की कसम देकर कहती हूं कि तू अपने चाल-चलन को बहुत सम्हाले रहना और वही काम करना जिसमें किशोरी का भला हो, क्योंकि उसका नमक मेरे और तेरे रोम-रोम में भिदा हुआ है - और साथ ही मुझे इस बात का भी पूरा विश्वास है कि किशोरी तुझे जी से चाहती है और वह जो कुछ करेगी तेरे लिए सब अच्छा ही करेगी। बाकी रही किशोरी की मां और किशोरी का नाना, सो किशोरी की मां एक ऐसे आदमी के पाले पड़ी है कि जिसके मिजाज का कोई ठिकाना नहीं, ताज्जुब नहीं कि किसी दिन उसे खुद अपनी जान दे देनी पड़ जाय, और किशोरी का नाना परले सिरे का क्रोधी है, अतएव सिवाय किशोरी के तुझे सहारा देने वाला मुझे कोई दिखाई नहीं देता।''

इतना सुनते-सुनते किशोरी को अपनी मां याद आ गयी और उसकी आंखों से टप-टप आंसू की बूंदें गिरने लगीं। कमला का भी यही हाल था। कमलिनी ने दोनों के आंसू पोंछे और समझा-बुझाकर दोनों को शान्त किया। थोड़ी देर तक बातचीत बन्द रही, इसके बाद फिर शुरू हुई।

कमला - (कमलिनी से) तो क्या मैं सुन सकती हूं कि मेरे बाप ने क्या काम किये हैं जिनके लिए आज उसको यह दिन देखना पड़ा?

कमलिनी - हां-हां, मैं वह सब हाल तुमसे कहूंगी, मगर कमला, तुम यह न समझना कि उसके सबब से हम लोगों के दिल में तुम्हारी मुहब्बत कम हो जायगी।

किशोरी - नहीं-नहीं, ऐसा कदापि नहीं हो सकता! मैं तुम्हारी नेकियों को कदापि नहीं भूल सकती। तुमने मेरी जान बचाई, तुमने दुःख के समय मेरा साथ दिया, और तुम्हारे ही भरोसे पर मैंने जो जी में आया किया।

लक्ष्मीदेवी - (कमला से) यद्यपि मेरा-तुम्हारा साथ नहीं हुआ है, परन्तु मैं तुम्हारे दिल को इन्हीं दो-चार दिनों में अच्छी तरह समझ गई हूं। निःसन्देह तुम्हारी दोस्ती कदर करने लायक है और यह बात तो हम लोग अच्छी तरह जानते हैं कि तुमने किशोरी के लिए बहुत तकलीफ उठाई, इससे ज्यादा कोई किसी के लिए नहीं कर सकता।

कमला - मैंने किशोरी के लिए कुछ भी नहीं किया, जो कुछ किया किशोरी की मुहब्बत ने किया है। मैं तो केवल इतना जानती हूं कि मेरी जिंदगी किशोरी की जिंदगी के साथ है। यदि वह खुश है तो मैं भी खुश हूं, इसे दुःख है तो मुझे भी रंज है। और फिर मैं किस लायक हूं! मगर उस समय बेशक मुझे बड़ा दुःख होगा जब किसी को यह कहते सुनूंगी कि 'कमला का बाप दुष्ट था।' हाय, जिसके साथ मैं जान देने के लिए तैयार हूं, उसी के साथ मेरा बाप बुराई करे!

कमलिनी - नहीं-नहीं, कमला तुम्हारे बाप ने किशोरी के साथ कोई बुराई नहीं की बल्कि उसने हम तीनों बहिनों के साथ बुराई की है जिन्हें तुम थोड़े दिन पहले जानती भी नहीं थीं। अतएव तुम्हें रंज न करना चाहिए, फिर मैं यह भी उम्मीद करती हूं कि राजा वीरेन्द्रसिंह भूतनाथ का कसूर माफ कर देंगे।

लक्ष्मीदेवी - बहिन, इन बातों को जाने भी दो! चाहे भूतनाथ ने हम लोगों के साथ कैसी ही बुराई क्यों न की हो, मगर हम लोग उसे अवश्य माफ करेंगे क्योंकि कमला को किसी तरह उदास नहीं देख सकते। कमला, तू मेरी सगी बहिन से बढ़कर है! जब कि किशोरी तुझे अपना मानती है तो निःसन्देह हम लोग उससे बढ़कर मानेंगी। सच तो यह है कि आज हम लोग जिन सुखों की आशा कर रहे हैं, वे सब किशोरी के चरणों की बदौलत हैं।

इतना कहकर लक्ष्मीदेवी ने कमला को गले लगा लिया और उसके आंसू पोंछे, क्योंकि इस समय उसकी आंखों से बेअन्दाज आंसू बह रहे थे। किशोरी भी रो रही थी, लक्ष्मीदेवी, लाडिली और कमलिनी की आंखें भी सूखी न थीं। कमलिनी ने सभी को समझाया और बातों का रंग-ढंग बदल देने की कोशिश की। थोड़ी देर तक सन्नाटा रहने के बाद सभी ने एक-एक करके अपना हाल कहना शुरू किया यहां तक कि आज की तीन पहर रात बातों में ही बीत गई और इसके बाद एक नई घटना ने सभी को चौंका दिया।

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