1) एक सवाल बार-बार आता है मन मेरे को हर बार झंझोर जाता है क्यूं बहू बेटी नहीं बन पाती क्यूं बहू अपनी नही कहलाती क्या फर्क रह जाता है बेटी और बहू में यह समझ मेरी नहीं आती यह समझ मेरी नहीं आती ।

     2) हर बार दिल  मेरा यह पूछे जाता है खुद ही बहू को लाया जाता है फिर उसे बेटी क्यूं न बनाया जाता है क्यूं हर बार उसे पराया किया जाता है आखिर क्या फर्क रह जाता है बेटी और बहू में यह समझ मेरी नहीं आती यह समझ मेरी नहीं आती।

           3)हर बार जाना जाता है, हर बार यह माना जाता है जो भी करें बहू गलत वह बतलाया जाता है बहू- बहू होती है एहसास दिलाया जाता है बेटी नही बहू है हमारी यही जतलाया जाता है  हो गुण अनेक बहू में फिर भी गुणेहगार ठहराया जाता है क्या फर्क रह जाता है बेटी और बहू में यह समझ मेरी नहीं आती यह समझ मेरी नहीं आती।

4)हर बार मन पूछता  है हर बार मन जानना चाहता है क्या कमी होती है बहू के प्यार में जो उसे   दोषी ठहराया जाता है क्यूं हर बार उसकी नियत पर शक किया जाता है आखिर बहू -बेटी  में क्या फर्क रह जाता है यह समझ मेरी में नहीं आती यह समझ मेरी नहीं आती।

      5)हर बार सोचती हूं क्यूं बहू बेटी सा सम्मान नहीं पातीं क्यूं बहू हर बार खुद को अकेला पाती क्यूं उसकी मनसा गलत समझी जाती क्यूं उसपे एतवार नही दुनिया कर पाती सब छोड़ मन से बहू ससुराल को अपनाती फिर क्यूं दुनिया उसे प्यारी  बतलाती आखिर बहू-बेटी में क्या फर्क रह जाता है यह समझ मेरी नहीं आती यह समझ मेरी नहीं आती।

        6)जब  बहू ऐसे जानी जाती है दोषी मानी जाती है तब गलती बहू भी कर जाती है ,न चाहकर भी ससुराल को बुरा कह जाती है ऐसे में बहू करें भी क्या जब वह अपनी न मानी जाती है तब आता वह कर जाती है, तब वह जानना यह चाहती है आखिर बहू -बेटी में क्या फर्क रह जाता है यह समझ मेरी नहीं आती यह समझ मेरी नहीं आती।

        7)ओ  सुसराल वालों जानना चाहू मैं मानना चाहूं मैं आखिर क्या करें बहू कि अपनाया जाए उसे ,आखिर कैसे यकीन बहू दिलाए कैसी अगिन परीक्षा बहू दे जाए जो सुसराल वालों को यकीन आ जाए कि बहू गलत नही है यह सबको अपना मानती हैं दिल से सबको  चाहती हैं यह ,कैसे यह एतवार दिलाया जाए बहू भी खुब रोती है फिर भी बिना छिकसत आपकी होती है कैसे यह एहसास दिलाया जाए कैसे यह समझाया जाए कि बहू भी परिवार का एक बहूमूल्य अंग होती है बहू बहू नहीं बेटी होती है बेटी होती है। 

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