जो कुछ दिन बाकी था, दीवान हरदयालसिंह ने जासूसों को इकट्ठा करने और समझाने-बुझाने में बिताया। शाम को सब जासूसों को साथ ले हुक्म के मुताबिक महाराज जयसिंह के पास बाग में हाजिर हुए।

खुद महाराज जयसिंह ने जासूसों से पूछा - 'तुम लोग जालिम खाँ का पता क्यो नहीं लगा सकते?'

इसके जवाब में उन्होंने अर्ज किया - 'महाराज, हम लोगों से जहाँ तक बनता है कोशिश करते हैं, उम्मीद है कि पता लग जाएगा।'

महाराज ने कहा - 'आफत खाँ एक नया शैतान पैदा हुआ? इसने अपने इश्तिहार में अपने मिलने का पता भी लिखा है, फिर क्यों नहीं तुम लोग उसी ठिकाने मिल कर उसे गिरफ्तार करते हो?'

जासूसों ने जवाब दिया - 'महाराज आफत खाँ ने अपने मिलने का ठिकाना 'टेटी-चोटी' लिखा है, अब हम लोग क्या जानें 'टेटी-चोटी' कहाँ है, कौन-सा मुहल्ला है, किस जगह को उसने इस नाम से लिखा है, इसका क्या अर्थ है तथा हम लोग कहाँ जाएँ?'

यह सुन कर महाराज भी 'टेटी-चोटी' के फेर में पड़ गए। कुछ भी समझ में न आया। जासूसों को बेकसूर समझ कुछ न कहा, हाँ डरा-धमका कर और ताकीद करके रवाना किया।

अब महाराज को अपने जीने की उम्मीद कम रह गई, खौफ के मारे रात-भर हाथ में तलवार लिए जागा करते, क्योंकि थोड़ा-बहुत जो कुछ भरोसा था अपनी बहादुरी ही का था।

दूसरे दिन इश्तिहार फिर शहर में चिपका हुआ पाया गया जिसे पहरे वालों ने ला कर हाजिर किया। दीवान हरदयालसिंह ने उसे पढ़ कर सुनाया, यह लिखा था -

'देखना, खूब सँभल कर रहना। बद्रीनाथ को गिरफ्तार कर चुका हूँ, अपने पहले वादे के बमूजिब कल बारह बजे रात को उसका सिर ले कर तुम्हारे महल में हम लोग कई आदमी पहुँचेंगे। देखें कैसे गिरफ्तार करते हो।।

- आफत खाँ'

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