स्लीमैन ने ठान लिया था की वह ठगों को सबक ज़रूर सिखायेंगे |ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भी उनका साथ देते हुए उन्हें  THUGEE AND DACOITY DEPARTMENT का हेड बना दिया | इस विभाग का दफ्तर जबलपुर में खोला गया |स्लीमैन को मालूम था की जबलपुर और ग्वालियर के आस पास के जंगलों में ये ठग ज्यादा सक्रीय हैं |सबसे पहले उन्होनें दिल्ली से लेकर जबलपुर और ग्वालियर के हाईवे के आसपास के जंगल का सफाया कर डाला |उसके बाद उन्होनें देश भर में गुप्तचरों को फैला दिया | इन गुप्तचरों का काम था ठगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को समझना |रोमासी नाम की भाषा कुछ इस प्रकार थी |

1. पक्के ठग को कहते थे बोरा या औला

2. ठगों के गिरोह के सरगना को कहते थे जमादार

3. अशर्फी को कहते थे गान या खार

4. जिस जगह सारे ठग इकठ्ठा होते थे उसे कहते थे बाग या फूर

5. शिकार के आस-पास मंडराने वाले को कहते थे सोथा

6. जो ठग सोथा की मदद करता था उसे कहते थे दक्ष

7. पुलिस को वो बुलाते थे डानकी के नाम से

8. जो ठग शिकार को फांसी लगता था उसे फांसीगीर के नाम से जाना जाता था।

9. जिस जगह शिकार को दफनाया जाता था उसे तपोनी कहते थे।


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