विश्वेश्रवा ने अपने पुत्रों को धर्म और पांडित्य की अच्छे से शिक्षा दी | एक ऐसा समय आ गया की दस्ग्रीव  जैसा कोई ज्ञानी इस पृथ्वी पर मोजूद नहीं  था | लेकिन फिर दस्ग्रीव और कुम्भकरण के लोगों पर अत्याचार बढ़ने लगे | ऐसे में एक दिन विश्वेश्रवा के दुसरे पुत्र कुबेर का वहां आगमन हुआ | उसे देख केकसी के मन में अपने पुत्रो के लिए भी वैसा वैभव प्राप्त करने की इच्छा हुई | उसने अपने पुत्रो से कहा की वह ब्रह्मा की तपस्या करें |विभीषण पहले से ही धर्मात्मा प्रवृत्ति का था | उसने काफी कठिन तपस्या कर विष्णु को प्रसन्न किया था | बदले में भगवान ने उसे अपनी असीम भक्ति का वरदान किया था |
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