प्राचीन समय में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशु बलि देने की प्रथा प्रचलन में आई |पर क्या पशु बलि हिन्दू धर्म प्रथा का मूल हिन्दू धर्म है | इस सवाल का उत्तर नहीं है |सभी वेदों में पशु की बलि देने की बात की भी निंदा की गयी है |हकीकत में हिन्दू धर्म में कई लोक परमपराओं की धाराएं जुडती रही और उन्ही का नतीजा है की पशु बलि इतनी प्रचलन में आ गयी |पशु बलि प्रथा के संबंध में पंडित श्रीराम शर्मा की किताब 'पशुबलि : हिन्दू धर्म और मानव सभ्यता पर एक कलंक' में लिखा है 

'' न कि देवा इनीमसि न क्या योपयामसि। मन्त्रश्रुत्यं चरामसि।।'-...  सामवेद-2/7
अर्थ : ''देवों! हम हिंसा नहीं करते और न ही ऐसा अनुष्ठान करते हैं, वेद मंत्र के आदेशानुसार आचरण करते हैं।''

अर्थात ये एक निंदनीय कार्य है और किसी को भी ऐसा नहीं करना चाहिए | तो ज़ाहिर है ये मान्यता हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं है बल्कि लोक परमपराओं ने इसे इतना महत्वपूर्ण बना दिया है |

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