नवसारी, गुज़राथ

लगभग दो दशकों पहले एक खबर अखबार मी आई थी| वह खबर एक रेल्वे कर्मचारी के बारेमे थी| व्ह कर्मचारी नवसारी के वनोंमें घूम रहा था| कर्मचारीने आपने काम से छुट्टी ली रखी थी| नवसारी के वनों में घुमते वक्त, उसे एक 12 फुट उँची व्यक्ती मिली जिसके माथे पर एक घांव था| वह व्यक्ती के साथ बातें करते वक्त उसे पता चला की भीम उस व्यक्तीसे कद काठीमे उँचा और अधिक बलवान था| 

अश्वत्थामा और संत नरणप्पा

संत नरणप्पाजी ने महाभारतका अपना एक संस्करण लिखा था| उनका यह मानना था कि उन्होने यह महाभारत अश्वत्थामा कि मदद से लिखी थी| अश्वत्थामा ने उनसे यह बात सबसे गुप्त रखने के लिये खी थी| मगर उन्होने उत्साह में यह भात आपने बिवी से खी थी| उनके महाभारत का अंत “गदा पर्व” तक हि लिखा गया था| अपितु उन्होने अश्वत्थामा से किया हुआ वचन तोडा था| जैसेही उन्होने आपनी बिवी से यह बात बताने के तुरन्त हि बाद अगलेही दिन उनकी मृत्यु हुई थी|

स्वामीनारायणजी के माता-पिता

धर्मदेव और भक्तिमाता (स्वामीनारायण के पिता और माता) को २०० साल पहले अश्वत्थामा ने शाप दिया था। इसका वर्णन शतानंद मुनिद्वारा रचित सत्संगी जीवन में किया गया है| उन्होने बताया है की, जब स्वामीनारायणजी के माता-पिता वन में रास्ता भटक गए थे, तभी वे एक व्यक्ति से मिले - वह एक ब्राह्मण प्रतीत हो रहा था| उसने नारंगी कपडे परिधान किये थे| वह लंबा और सुदृढ कदकाठी का था| जब उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण उनके बच्चे के रूप में जन्म ले रहे हैं तब ब्राह्मण ने क्रोधित होकर कृष्ण को अपना शत्रु बताया और उन्हें श्राप दे दिया।

लुधियाना, पंजाब

लगभग १९६८-६९  के दौरान कि ये हकानी है| एक डॉक्टर ने घायल माथे वाले व्यक्ति से मिलने की घटना सुनाई। उसने ऐसा घांव पहले कभी नहीं देखा था जैसे, किसीने दिमाग को वहाँ से थोडा पिछे कर दिया हो| फिर भी त्वचा कसी हुई थी जैसे कि कुछ हुआ ही न हो| वह डॉक्टर उस व्यक्तीपर इलाज कर रहा था। डॉक्टर ने यह घांव देखकर मजाक में कहा कि,”आपका घांव तो अश्वत्थामा के घांव जैसा लगता है| जो कभी भर नही पायेगा...!” जब डॉक्टर दवा लेने के लिये अपनी  आलमारी कि ओर गया, वापस आणे पर उसने पाया कि व्ह आदमी जा चुका था| उन्हें वह फिर कभी नहीं मिला। लेकिन उन्होंने कहा कि, “उनकी आंखें हमेशा उस व्याक्ति की राह देखती हैं|”

नर्मदा का तट, गुज़रात

नर्मदा नदी के आसपास घूमते हुए कई लोगों ने किसी को माथे पर घांव के साथ देखा है।वह आदमी लम्बे कद काठी का था| हर समय उसके आसपास बहुत सारी मक्खियाँ, कीड़े मंडराते रहते थे।

पुराणो में यह लिखा है कि  अश्वत्थामा को देखनेवाले जिन्दा नही बचे|

असीरगढ़ किला

ऐसा कहा जाता है कि अश्वत्थामा पिछले ५००० वर्षों से किले के आसपास रहता हैं। वह सुबह सबसे पहले किले के मंदिर में भगवान शिव की पूजा करता हैं। जो आज भी एक रहस्य बना हुआ है| हर सुबह कोई आकर भगवान शिव को ताजे फूल और चंदन चढ़ा के चले जाता है। ऐसा माना जाता है कि अश्वत्थामा दिन का सबसे पहला उपासक हैं।

उस क्षेत्र से जुड़े लोगों ने एक मिथक बताया कि कभी-कभी अश्वत्थामा रात में दिखाई देता है और असीरगढ़ किले के आसपास ही रहता है। कभी-कभी अपने माथे का खून रोकने के लिए हल्दी और घी मांगता हैं। वह किले के परिसर में स्थित तालाब में स्नान करता है|

लिलोटीनाथ मंदिर, यु.पी.

लखीमपुर खीरी, यू.पी. के स्थानीय लोगों ने इस मंदिर में कई बार अश्वत्थामा को देखा है| मंदिर के बंद होने पर भी लोग सुबह शिवलिंग पर चढे फूलों की कहानियां सुनाते हैं। न्यूज़१८ और झी न्यूज़ जैसे कुछ न्यूज़ चैनलों ने इन जगहों की पड़ताल करने की कोशिश कि थी| अश्वथामा की मौजूदगी का कोई तथ्यात्मक सबूत नहीं मिला था। हालांकि, उन्होंने मंदिर परिसर के भीतर कुछ रहस्यमयी घटनाओं को देखा जो अनुत्तरित और अनिर्णायक हैं। ये कहानी एक पतलीसी लकीर है जो अंधविश्वास और दृढ़ विश्वास को अलग करती है|

अंत में, यह स्थापित नहीं किया जा सकता है कि ये कहानियां सत्य या मिथक हैं| हालांकि, एक पौराणिक चरित्र के रूप में अश्वत्थामा में बहुत सारे गहरे रहस्य और अनुत्तरित प्रश्न और सिद्धांत हैं।

 

कभी-कभी लगता है कि अंग्रेजी फिल्म अवेन्जर का एक पात्र जिसका नाव विज़न है, वह अश्वथामा से प्रेरित है| उसके भी माथे पे एक मणी है जो उसे जीवित रखता है| पाश्चात्य देशोन में कई कथायें हिंदुस्तानी पुराणों से प्रेरित लिखी या चित्रित कि गयी है| हमारी संस्कृती प्राचीन एवं समृद्ध है इसका यह ज्वलंत उदाहरण है|

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