इक आशियाना मेरा
था छोटा सा इक,आशियाना मेरा
वो जल गया हाँ जल गया।
तिनका-तिनका,पत्ता -पत्ता चुन बसाया था,जिसे
वो जल गया हाँ जल गया।
था छोटा सा इक.....
यादों को सजोंकर,पलकों को भिगोकर
दिन और रैन में मै,गमों और चैन में मै
सजाया था जिसको दिलो जान से मैं,
वो जल गया हाँ जल गया।
था छोटा सा इक..........
कितने दिन भाग कर मैं,
कितने रात जाग कर मैं।
जाने क्या सपने सजाये,
दिलों को तार कर मैं।
वो जल गया हाँ जल गया।
था छोटा सा इक..........
माँ का प्यार था,
ममता का बौछार था।
पिता का डाँट था,
वर्षों का ख्याल था।
छुपा कर रखा जिसमें,
खुशियाँ हजार था।
वो जल गया हाँ जल गया।
था छोटा सा इक.........
पवन का शोर था,
गगन का जोर था।
अग्न का साथ था,
हाँ-हाँ भरमार था।
सबने मिल सताया उसे,
वो जल गया हाँ जल गया।
था छोटा सा इक...........
खुदा को मन्जुर क्या था,
उसका कसूर क्या था।
बड़ा मजबूर था वो,
गमों से चुर था वो।
जाने क्या मुकद्दर में,
लिखा था उसका।
वो जल गया हाँ जल गया।
था छोटा सा इक.........
-गौतम गोविन्द
।। कविता संग्रह ।।
जिन्दगी एक अभिलाषा है,
गजब इसकी परिभाषा है।
जिन्दगी क्या है? मत पूछो यारों,
बन गई तो जन्नत बिखर गई तो तमाशा है।