'अधखिला फूल' के पृष्ठ 89 पंक्ति में 9 में 'पतोहें' और पृष्ठ 110 पंक्ति 20 में देवतों, और पृष्ठ 129 पंक्ति 10 में बिपतों, शब्द का प्रयोग हुआ है। व्याकरणानुसार इन शब्दों का शुद्ध रूप, पतोहुएँ, देवताओं, और बिपत्तियों, होता है। अतएव यहाँ पर प्रश्न हो सकता है, कि इन शुद्ध रूपों के स्थान पर, पतोहें इत्यादि अशुद्ध रूप क्यों लिखे गये? बात यह है कि पतोहू और बिपत्ति शब्द का बहुवचन व्याकरणानुसार अवश्य पतोहुएँ, और बिपत्तियाँ होगा, परन्तु सर्वसाधारण बोलचाल में पतोहू के स्थान पर पतोह और बिपत्ति के स्थान पर बिपत शब्द का प्रयोग करते हैं, अतएव व्याकरणानुसार इन दोनों शब्दों का बहुवचन पतोहें, और बिपतों किम्बा बिपतें यथास्थान होगा। इसके अतिरिक्त उच्चारण की सुविधा, कारण, अब पतोहुएँ और बिपत्तियों के स्थान पर पतोहें व बिपतों शब्दों का ही सर्वसाधारण में प्रचार है, इसलिए पतोहुएँ और बिपत्तियों के स्थान पर पतोहें और बिपतों लिखा जाना ही सुसंगत है। हाँ देवतों शब्द किसी प्रकार व्याकरणानुसार सिद्ध न होगा, क्योंकि देवता शब्द का बहुवचन जब होगा तो देवताओं ही होगा। अतएव इस शब्द के विषय में अशुद्ध प्रयोग का दोष अवश्य लग सकता है। परन्तु स्मरण रहे कि व्याकरणानुसार यद्यपि देवतों पद असिद्ध है तथापि सर्वसाधारण की बोलचाल में देवताओं शब्द नहीं है, देवता का बहुवचन उन लोगों के द्वारा देवतों ही व्यवहृत होता है, और समाज की बोलचाल को सदा व्याकरण पर प्रधानता है, अतएव देवताओं के स्थान पर देवतों पद का ही प्रयोग किया गया है। किन्तु यदि इसमें मेरा दुराग्रह समझा जावे तो देवतों शब्द के स्थान पर देवताओं शब्द ही पढ़ा जावे, इस विषय में मुझको विशेष तर्क वितर्क नहीं है।